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________________ ४२ ] [ कर्मप्रकृति के और मिश्र अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्व दृष्टियों के। इनमें से देशविरत के तेरह प्रकृतिरूप पतद्ग्रह में प्रमत्त और अप्रमत्त विरत के नवकरूप पतद्ग्रह में उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के सप्त प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में, अविरत सम्यग्दृष्टि और मिश्र दृष्टि के सत्रह प्रकृतिरूप पतद्ग्रह में, उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के अथवा क्षपकश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रम होता है। सास्वादन सम्यग्दृष्टि के इक्कीस प्रकृतिरूप पतद्ग्रह स्थान में संक्रम होता है। जिन आचार्यों ने चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाला होता हुआ उपशमश्रेणी से गिरता और मिथ्यात्व के अमिमुख सास्वादन सम्यग्दृष्टि माना है, उनके मत में सास्वादन के इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान का इक्कीस प्रकृतिरूप पतद्ग्रह में संक्रम कहा है। अन्यथा अनन्तानुबंधी के उदय सहित सास्वादन सम्यग्दृष्टि के इक्कीस प्रकृतिरूप पतद्ग्रह स्थान में पच्चीस प्रकृतिरूप स्थान ही संक्रम में प्राप्त होता है। जो कि पूर्व में कहा जा चुका है। इससे शेष रहे सर्व सत्रह संक्रम स्थान उपशम और क्षपकश्रेणी में संक्रमित होते हैं। इनमें बीस प्रकृतिवाला संक्रमस्थान सात, छह और पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रह में संक्रांत होता है और वे सब उपशमश्रेणी वाले जीवों में पाये जाते हैं। उनमें भी सात और छह प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान उपशम श्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के और पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रह उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पाया जाता है। पांच प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थान में उन्नीस प्रकृति रूप स्थान संक्रांत होता है। यह उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पाया जाता है तथा उसी जीव के अठारह प्रकृति रूप संक्रमस्थान पांच प्रकृतिकरूप और चार प्रकृतिकरूप पतद्ग्रह में संक्रांत होता है। चौदह प्रकृतिरूप संक्रम स्थान छह प्रकृतिकरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होता है। ये उपशमश्रेणी में वर्तमान उपशम सम्यग्दृष्टि के पाये जाते हैं तथा तेरह प्रकृतिक रूप संक्रमस्थान छह प्रकृति रूप और पांच प्रकृति रूप पतद्ग्रह में संक्रांत होता है। यह छह प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थान उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पाया जाता है तथा पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान क्षपकश्रेणी में वर्तमान जीव के पाया जाता है। पांच और चार प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में बारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं। वे इस प्रकार कि ये बारह प्रकृतियां क्षपकश्रेणी में पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रह में संक्रांत होती हैं और उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के चार प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होती हैं तथा ग्यारह प्रकृतियां पांच, चार, तीन प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होती हैं। इनमें से उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि और क्षपकश्रेणी में वर्तमान (क्षायिक सम्यग्दृष्टि) जीव के पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रह स्थान में ग्यारह का संक्रम होता है तथा उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव के तीन और चार प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रम होता है तथा दस प्रकृतिरूप संक्रमस्थान का चार और पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रम होता है। यह
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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