________________
३८ ]
[ कर्मप्रकृति ___इस प्रकार क्षपकश्रेणी में ९, ५, ४, ३, २, १ प्रकृतिक छह पतद्ग्रहस्थान में १९, १३, १२, ११, १०, ४, ३, २, १ प्रकृतिक ९ संक्रमस्थान जानना चाहिये।
. इस प्रकार मोहनीयकर्म के पतद्ग्रह स्थानों का निरूपण समझना चाहिये। पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थानों का संकलन - अब मोहनीय कर्म के पूर्वोक्त पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थानों का संकलन करते हुये कहते हैं -
छब्बीस - सत्तवीसण, संकमो होइ चउसु ठाणेसु। बावीस - पन्नरसगे, एकारस - इगुणवीसाए॥१२॥ सत्तरस - एकवीसासु, संकमो होइ पन्नवीसाए। नियमा चउसु गईसु, नियमा दिट्ठी कए तिविहे ॥१३॥ बाबीस - पन्नरसगे, सत्तग - एक्कारसिगुणवीसासु। तेवीसाए नियमा, पंच वि पंचिंदिएसु भवे॥१४॥ चोदसग - दसग - सत्तग - अट्ठारसगे य होइ बावीसा। नियमा मणुयगईए, नियमा दिट्ठी कए दुविहे ॥१५॥ तेरसग - नवग - सत्तग - पणग एकवीसासु।
एक्कावीसा संकमइ सुद्धसासाणमीसेसु ॥१६॥ एत्तो अविसेसा, संकमंति उवसामगे व खवगे वा। उवसामगेसु वीसा य, सत्तगे छक्क पणगे य॥१७॥ पंचसु एगुणवीसा, अट्ठारस पंचगे चउक्के य। चउदस छसु पगईसु तेरसगं छक्क-पणगंमि॥१८॥ पंच - चउक्के बारस, एक्कारस पंचगे तिग चउक्के। दसगं चउक्क-पणगे, नवगं च तिगंमि बोधव्वं ॥१९॥ अट्ठ दुग तिग चउक्के सत्त चउक्के तिगे य बोधव्वा। छक्कं दुगम्मि नियमा, पंच तिगे एक्कगदुगे य॥२०॥ चत्तारि तिग-चउक्के, तिन्नि तिगे एक्कगे य बोधव्वा। दो दुसु एक्काए, विय एक्का एक्काए बोधव्वा॥२१॥