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________________ संक्रमकरण ] उपशमश्रेणी में क्षायिक सम्यग्दृष्टि के संक्रम और पतद्ग्रह की विधि अब उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षापिक सम्यग्दृष्टि के संक्रम और पतद्ग्रह की विधि बतलाते हैं - अनन्तानुबंधीचतुष्क और दर्शनमोहत्रिक रूप सप्तक के क्षय हो जाने पर इक्कीस प्रकृतियों की सत्ता वाला होता हुआ क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव उपशमश्रेणी को प्राप्त होता है, उसके अन्तर्मुहूर्तकाल तक पुरुषवेद और संज्वलन चतुष्करूप पतद्ग्रहपंचक में इक्कीस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं। तत्पश्चात् अन्तरकरण करने पर संज्वलनलोभ का संक्रम नहीं होता है। इसलिये इक्कीस प्रकृतियों में से उसके कम कर देने पर बीस प्रकृतियां पंचक रूप पतद्ग्रह में संक्रांत होती हैं और अन्तर्मुहूर्तकाल तक संक्रांत होती रहती हैं। पुनः नपुंसकवेद के उपशांत हो जाने पर उन्नीस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं और वे भी अन्तर्मुहूर्तकाल तक संक्रांत होती रहती हैं। पुनः स्त्रीवेद के उपशांत हो जाने पर शेष अठारह प्रकृतियां इसी पंचक रूप पतद्ग्रह में संक्रांत होती हैं और वे भी अन्तर्मुहूर्तकाल तक संक्रांत होती रहती हैं। तत्पश्चात् पुरुषवेद की प्रथम स्थिति में एक समय कम दो आवलिका शेष रह जाने पर पुरुषवेद पतद्ग्रह नहीं रहता है। इसलिये पूर्वोक्त पंचक में से उसे निकाल देने पर चतुष्करूप पतद्ग्रह में वे ही अठारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं । तत्पश्चात् हास्यादि छह नो कषायों के उपशांत हो जाने पर शेष बारह प्रकृतियां चतुष्करूप उसी पतद्ग्रह में भी संक्रांत होती हैं और वे एक समय कम दो आवलिकाकाल तक संक्रांत होती रहती हैं । तत्पश्चात् पुरुषवेद के उपशांत हो जाने पर ग्यारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं और वे चतुष्करूप पतद्ग्रह में एक अन्तर्मुहूर्तकाल तक संक्रांत होती हैं। तत्पश्चात् संज्वलन क्रोध की प्रथम स्थिति में एक समय कम तीन आवलिकाल शेष रह जाने पर संज्वलन क्रोध भी पतद्ग्रह नहीं रहता है । इसलिये उक्त चार में से उसे कम कर देने पर शेषत्रिक रूप पतद्ग्रह में वे ही पूर्वोक्त ग्यारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं और वे भी तब तक, जब तक एक समय कम दो आवलिकाल है। इसके पश्चात् अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण रूप क्रोधद्विक के उपशांत हो जाने पर शेष नौ प्रकृतियां पूर्वोक्त त्रिक रूप पतद्ग्रह में संक्रांत होती हैं और वे भी तब तक जब तक कि एक समय कम दो आवलिकाल पूर्ण होता है। तत्पश्चात् संज्वलन क्रोध के उपशांत हो जाने पर आठ प्रकृतियां संक्रांत होती हैं और वे भी त्रिक रूप पतद्ग्रह में अन्तर्मुहूर्तकाल तक संक्रांत होती रहती हैं। तत्पश्चात् संज्वलन मान की प्रथम स्थिति में एक समय कम तीन आवलिकाल शेष रह जाने
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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