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________________ परिशिष्ट ] [ ४८३ दो आवलिका शेष रहने पर आगाल नहीं होता है। उदीरणा आवलिकापर्यन्त होती है और चरम समय में केवल उदय ही होता है। अतीत्थापना (अतिस्थापना) अपकृष्ट द्रव्यस्य निक्षेपरूपा न निक्षेपः xxx तेनातिक्रम्यमाणं स्थानं अतिस्थापनम् - जिन निषेकों में अपकर्षण या उत्कर्षण किये गये द्रव्य का निक्षेप नहीं किया जाता है, उनका नाम अतिस्थापना है। ऐसे निषेक उदयावलिका के दो त्रिभाग मात्र होते हैं। देशोपशमना देशभूताभ्यां यथाप्रवृत्तापूर्वकरण संज्ञिताभ्यां करणाभ्यां प्रकृतिस्थित्यादीनां देशमेकदेशं शमयत्युपशमयति देशोपशमनाभिधीयते – देशकरणरूप यथाप्रवृत्त और अपूर्वकरण परिणामों के द्वारा जो प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश का अल्प मात्रा में (एक देश से) उपशम किया जाता है, उसे देशोपशमना (देशकरणोपशमना) कहा जाता है। देशविरत यस्तु देशतोविरतः सदेशविरतः - सर्व असंयमभाव को छोड़ने में असमर्थ जो व्यक्ति हिंसादि पांच पापों के एकदेश से विरत होता है, उसे देशविरत कहते हैं। प्रतिसेवानुमति यः स्वयं परैर्वाकृतं पापंश्लाघते सावद्यारंभोपपन्नं वाऽशनाद्युपभुंक्ते तदा तस्य प्रतिसेवनानुमतिः - जो स्व और परकृत पाप की प्रशंसा करता है अथवा सावध आरंभ से उत्पन्न अशनादि का भोग करता है वह उसकी प्रतिसेवनानुमति है। प्रतिश्रवणानुमति ____ यदा तु पुत्रादिभिः कृतं पापं श्रुणोतिः श्रुत्वा चानुमनुतेः न च प्रतिषेधति तदा प्रतिश्रवणानुमतिः - जब पुत्रादि द्वारा कृत पाप को सुनता है और सुन कर अनुमोदन करता है किन्तु प्रतिषेध नहीं करता है तब प्रतिश्रवणानुमति है। संवासानुमति यदा पुनः सावद्यारंभ प्रवृत्तेषु पुत्रादिषु के वलं ममत्वमात्रयुक्तो भवति, नान्यत् किंचितप्रतिश्रुणोतिश्लाघते वा, तदा संवासानुमतिः - जब सावध आरंभ में प्रवृत्त पुत्रादि पर ममत्व मात्र करता है, किन्तु पुत्रकृत सावध कार्यों को न सुनता है और न श्लाघा भी करता है, तब संवासानुमति है।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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