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________________ परिशिष्ट ] [ ४७७ प्रयोगप्रत्ययस्पर्धक कहते हैं और उनका विचार करना प्रयोगप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा है। अनुकृष्टि अनुकृष्टि दिति अनुकर्षणमनुकृष्टिरनुवर्तन मित्यर्थः अनुकृष्टिनाम अधस्तन समयपरिणाम खण्डानामुपरितन समय परिणामखण्डैः सादृश्यम् - अनुकृष्टि यानि अनु-पीछे से कृष्टि-कर्षना खींचना अर्थात् अधस्तन-पूर्वसमयवर्ती अनुभाग अध्यवसायस्थानों को उत्तर-उत्तर के स्थितिबंध समय में खींचकर सदृशता बताने को अनुकृष्टि कहते हैं। क्षुल्लक भव आउअबंधे संते जो उवरि विस्समण कालो। सव्व जहण्णो तस्स खुदा भवग्गहणं॥ आयुबंध होने पर जो सबसे जघन्य विश्रमण काल है उसको क्षुल्लक भव कहते हैं। अथवा तिर्यगायुषो मनुस्यायुषश्च जघन्या स्थिति क्षुल्लक भवः - तिर्यंच या मनुष्य आयु की जघन्यतम स्थिति को क्षुल्लक भव कहते हैं। ___ एक मुहूर्त में (४८ मिनट में) ६५५३६ क्षुल्लक भव होते हैं और एक मुहूर्त में ३७७३ प्राणापान (श्वासोच्छ्वास) तथा एक प्राणापान में कुछ अधिक १७ क्षुल्लक भव होते हैं। कण्डक कण्डकं च समयपरिभाषयाऽङ्गुलमात्र क्षेत्रासंख्येयभागगतप्रदेशराशि संख्या प्रमाणममिधीयते - अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र गत प्रदेशों की संख्या परिमाण को कण्डक कहते हैं। निर्वर्तन कण्डक निर्वर्तनंकंडकं नाम यत्र जघन्यस्थिति बंधारंभभाविनामनुभाग बंधाध्यवसाय स्थानानानुकृष्टिः परिसमाप्ताः तत्पर्यन्ता मूलत आरभ्य स्थितयः पल्योपमासंख्येयभाग मात्र प्रमाणा उच्यन्ते - जघन्य स्थिति से आरम्भ होने वाली अनुभाग बंधाध्यवसायों की अनुकृष्टि जहां परिसमाप्त होती है, वहां तक के अर्थात् मूल से प्रारम्भ करके पल्योपम के असंख्येय भाग प्रमाण तक के काल को निर्वर्तन कंडक कहते हैं।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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