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________________ १६ ] [ कर्मप्रकृति फिर भी बांधने लगता है तथापि उनकी सत्ता होने पर भी उन्हें संक्रमित नहीं करता है। क्योंकि बंधावलिकागत पुद्गल सर्वकरणों के अयोग्य कहे गये हैं। मिथ्यात्व कर्म, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का पतद्ग्रह है। इसलिये उसके निकालने पर शेष तेईस प्रकृतियां संक्रात होती हैं (४-१)। अथवा चौबीस प्रकृतियों की सत्तावाले सम्यग्दृष्टि का सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व का पतद्ग्रह है। इसलिये उसके निकाल देने पर शेष तेईस प्रकृतियां संक्रात होती हैं (४-२)। उसी जीव के मिथ्यात्व का क्षय होने पर बाईस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (५-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के चारित्रमोहनीय का अन्तरकरण कर देने पर संज्वलन लोभ का भी संक्रमण नहीं होता है। क्योंकि अन्तरकरण करने पर पुरुषवेद और संज्वलन चतुष्क का आनुपूर्वी से संक्रम होता है यह वचन प्रमाण है । अथवा अनन्तानुबंधी चतुष्टय की विसंयोजना होने से या उपशम होने से संक्रम नहीं होता है। सम्यक्त्व प्रकृति, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व की पतद्ग्रह है। इसलिये संज्वलन लोभ अनन्तानुबंधी चतुष्क और सम्यक्त्व इन छह प्रकृतियों को अट्ठाईस प्रकृतियों में से निकाल देने पर शेष बाईस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं(५-२)। . उपशमश्रेणी में वर्तमान उसी औपशमिक सम्यग्दृष्टि के नपुंसकवेद के उपशांत हो जाने पर इक्कीस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (६-१)। अथवा बाईस प्रकृतियों की सत्तावाले जीव का सम्यक्त्व कहीं पर भी संक्रांत नहीं होता है। इसलिये इक्कीस प्रकृतिक स्थान संक्रम में प्राप्त होता है(६-२)। अथवा क्षपकश्रेणी में वर्तमान क्षपक के जब तक आठ मध्यम कषाय क्षय को प्राप्त नहीं होती हैं तब तक इक्कीस प्रकृतिक स्थान प्राप्त होता है(६-३)। औपशमिक सम्यग्दृष्टि सम्बन्धी पूर्वकथित इक्कीस प्रकृतियों में से स्त्रीवेद के उपशांत होने पर शेष बीस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (७-१) । अथवा उपशमश्रेणी को प्राप्त हुए क्षायिक सम्यग्दृष्टि के चारित्रमोहनीय का अन्तरकरण करने पर संज्वलन लोभ का भी पूर्वोक्त युक्ति से संक्रम नहीं होता है, इसलिसे उसके निकाल देने पर बीस प्रकृतियां संक्रम में प्राप्त होती हैं (७-२)। ___तत्पश्चात् बीस प्रकृतियों में से नपुंसक वेद के उपशांत होने पर उन्नीस प्रकृतिक (८) और उन्नीस में से स्त्रीवेद के उपशांत होने पर अठारह प्रकृतियों का संक्रमस्थान प्राप्त होता है (९)। उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त बीस प्रकृतियों में से छह नो कषायों के उपशांत हो जाने पर शेष चौदह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१०)। पुनः (इन चौदह प्रकृतियों में से) पुरुषवेद के उपशांत होने पर तेरह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (११-१) । तथा क्षपकश्रेणी में वर्तमान क्षपक के पूर्वोक्त इक्कीस प्रकृतियों में से आठ कषायों के क्षय हो जाने पर शेष तेरह प्रकृतियां
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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