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असत्कल्पना से उसके स्पष्टीकरण का प्रारूप इस प्रकार है -
यही उत्कृष्ट अतीत्थापना है जो कि उत्कृष्ट कंडक प्रमाण है
जघन्य बंध अन्तः कोटा कोटी
प्रमाण
पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम कंडक रूप जघन्य अतीत्थापना
सम्पूर्ण कर्मस्थितिबंध
'मंड्कप्लुत्यन्याय' से उत्कृष्ट स्थितिबंध डायस्थिति से
[ कर्मप्रकृति
५ - निर्व्याघातभावी और व्याघातभावी स्थिति - अपवर्तना में अन्तर
अव्याघात विधान में अतीत्थापना केवल आवली मात्र रहती है और निक्षेप एक एक समय बढ़ता हुआ लगभग पूर्ण स्थिति प्रमाण हो जाता है। इसलिये वहां स्थितिघात होना संभव नहीं । प्रदेशों का अपकर्षण तो हुआ किन्तु स्थिति का नहीं ।
व्याघातविधान में निक्षेप अत्यन्त अल्प है और शेष सर्व स्थिति अतीत्थापना रूप रहती है। अर्थात् अपकृष्ट द्रव्य केवल अल्प मात्र निषेकों में ही मिलाया जाता है, शेष सर्वस्थिति में नहीं ।
जैसे निर्व्याघातविधान में आवलि प्रमाण उत्कृष्ट अतीत्थापना प्राप्त होने के पश्चात् ऊपर का जो निषेक उठाया जाता है, उसका समय तो अतीत्थापना के आवली प्रमाण समयों में से नीचे का एक