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________________ ४३६ ] [ कर्मप्रकृति इस प्रकार उद्वर्तना संबंधी कुछ नियमों को बतलाने के बाद अब दलिक निक्षेपों के बारे में विचार करते हैं। २ - उद्वर्तना में निर्व्याघातभावी स्थिति के दलिकनिक्षेपों की विधि (उद्वर्तना-अपवर्तना करण गाथा २ के अनुसार) उदयावलिका के बाहर की स्थितियों की उद्वर्तना की जाती है। बंधने वाली प्रकृतियों की जितनी अबाधा होती हैं, उसके तुल्य या हीन पूर्वबद्ध प्रकृतियों की जो स्थिति होती हैं उसका उद्वर्तन नहीं किया जाता है क्योंकि वह अबाधाकाल के अन्दर ही प्रविष्ट है। अतः अबाधाकाल के ऊपर की स्थितियां ही उद्वर्तित की जाती हैं । इस प्रकार अबाधाकाल के अन्तर्गत स्थितियां अतीत्थापना रूप हैं। यह उत्कृष्ट अतीत्थापना का प्रमाण है और वह अतीत्थापना हीन हीनतर तब तक जानना चाहिये, जब तक कि जघन्य अतीत्थापना आवलिका प्रमाण शेष रहती है। ____दलिकनिक्षेप विधि - जिस स्थिति के दलिक उठाकर आगे की स्थिति में प्रक्षिप्त किये जाते हैं, वह निक्षेप कहलाता है। वह निक्षेप दो प्रकार का है – जघन्य और उत्कृष्ट । आवलिका के असंख्यात भाग मात्र स्थितियों में जो कर्मदलिकों का निक्षेप होना होता है, वह जघन्य निक्षेप है तथा उत्कृष्ट स्थितिबंध होने पर उद्वर्तना योग्य स्थितियों को और बंधावलिका एवं अबाधा तथा उपरितनी आवलिका और आवलिका के असंख्यातवें भाग को छोड़ कर शेष सभी स्थितियों को उद्वर्तना योग्य जानना चाहिये, वह उत्कृष्ट दलिकनिक्षेप है। इसका आशय यह है कि - समयाधिक आवलिका और अबाधा से रहित शेष सम्पूर्ण कर्मस्थिति को उत्कृष्ट निक्षेप समझना चाहिये। सारांश यह है कि - अबाधा से ऊपर अनन्तर समय से प्रारम्भ होने वाली सम्पूर्ण कर्मस्थिति उत्कृष्ट दलिक निक्षेप है और सर्वोपरितन स्थिति जघन्य निक्षेप है। उक्त कथन दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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