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________________ परिशिष्ट ] [ ४३३ ७ - दिगम्बर कर्मग्रन्थों में आगत संक्रमकरण की संक्षिप्त रूपरेखा सामान्य संक्रमण के भेद १. प्रकृतिसंक्रमण - (अ) मूल, (ब) उत्तर प्रकृति संक्रमण। (अ) मूल प्रकृतिसंक्रमणं - १. देशसंक्रमण, २. सर्वसंक्रमण। २. स्थितिसंक्रमण – १. अपवर्तन, २. उद्वर्तन २ अन्यप्रकृतिसंक्रमण। ३. अनुभागसंक्रमण - १. अपवर्तन, २. उद्वर्तन, ३. अन्यप्रकृतिसंक्रमण ४. प्रदेशसंक्रमण – १. निर्जरा, २. अन्यप्रकृतिसंक्रमण। संक्रमण के भेद का दूसरा प्रकार .. १. स्वस्थानसंक्रमण, २. परस्थानसंक्रमण संक्रमण के भेदों का तीसरा प्रकार १. उद्वलन, २. विध्यात, ३. यथाप्रवृत्त ४. गुणसंक्रम ५. सर्वसंक्रम। उक्त उद्वलन आदि पांचों संक्रमणों का क्रम १. प्रकृतियों का बंध होने पर अपने बंधविच्छेद पर्यन्त यथाप्रवृत्तसंक्रम होता है। परन्तु मिथ्यात्व प्रकृति का नहीं होता है और बंधविच्छेद होने पर असंयत से ले कर अप्रमत्त पर्यन्त विध्यातसंक्रम होता है। २. अप्रमत्त से आगे उपशांतमोह पर्यन्त बंध रहित अप्रशस्त प्रकृतियों का गुणसंक्रमण होता है। इसी तरह प्रथमोपशमसम्यक्त्व आदि अन्य स्थानों पर भी गुणसंक्रमण होता है। ३. मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृति के पूरणकाल में और मिथ्यात्व के क्षय करने में अपूर्वकरण परिणामों के द्वारा मिथ्यात्व के अंतिम कंडक के उपान्त्यकालपर्यन्त गुणसंक्रमण और अंतिम काल में सर्वसंक्रमण होता है। ४. मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर सम्यक्त्वमोह और मिथ्यात्वमोहनीय का अन्तर्मुहूर्तपर्यन्त यथाप्रवृत्तसंक्रमण होता है और उद्वलना नामक संक्रमण द्विचरमकंडक पर्यन्त नियम से प्रवर्तता है। ५. उद्वलन प्रकृतियों का अंत के कंडक में संक्रमण और अन्त के काल में सर्वसंक्रमण होता है। संक्रमणीय प्रकृतियों का वर्गीकरण १. उद्वलनायोग्य – आहारकद्विक, वैक्रियद्विक, नरकद्विक, मनुष्यद्विक, देवद्विक, सम्यक्त्व
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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