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________________ ४३० ] [ कर्मप्रकृति और अन्तिम समय में परप्रकृति में जो दलिक प्रक्षिप्त किया जाता है जिससे वह स्थितिखंड सर्वथा निःसत्ताक हो जाता है। इसी का दूसरा नाम सर्वसंक्रम है। इसका प्रारूप इस प्रकार समझना चाहिये - स्थितिखंडों की उत्कीरणा विधि का प्रारूप कर्मदलिक ............. उपान्त्य स्थितिखंड तक २५६ . | १२८ परस्थान उत्तरोत्तर विशेषहीन सर्वस्तोक स्वस्थान उत्तरोत्तर असंख्यात गुणित २४० . १९२ १७६ १६० १४४ । २४० । २४० - । १२८ । । २५६ उपान्त्य स्थितिखंड तक तो उक्त विधि से कर्मदलिक प्रक्षेप किया जाता है और चरम स्थितिखंड में प्रथम उदयावलिका दलिक के सिवाय शेष सर्व दलिक परप्रकृति में इस प्रकार से संक्रान्त किया जाता है कि प्रथम समय में अल्प ३१ द्वितीय समय में उससे असंख्यात गुणित २१ तृतीय समय में उससे असंख्यात गुणित। इस प्रकार से प्रक्षिप्त करने से अन्तर्मुहूर्त के अंतिम समय में वह स्थितिखंड सर्वथा निःसत्ताक हो जाता है। यही सर्वसंक्रम है।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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