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________________ सत्ताप्रकरण ] अब इसी बात का स्पष्टीकरण स्वयं ग्रंथकार करते हैं - संभवतः (यथासम्भव ), ठाणाई शब्दार्थ संभवतो कम्मपएसेहिं – कर्मप्रदेशों की अपेक्षा से होंति होते हैं, या " और, उदयम्मि करणों में, य इसी प्रकार से । - - — - संभवतो ठाणाई, कम्मपएसेहिं होंति नेयाई । करणेसु य उदयम्मि. य, अणुमाणेणेवमेएणं ॥ ५० ॥ - गाथार्थ इसी प्रकार अनुमान द्वारा संभवत: ( यथासम्भव ) बंधन आदि करणों में और उदय में कर्मप्रदेशों की अपेक्षा प्रदेशसत्वस्थान जानने योग्य हैं । - विशेषार्थ संभवतः अर्थात् संभावना का आश्रय करके स्थान यानि प्रदेशसत्वस्थान बंधन आदि आठों करणों में और उदय में कर्मप्रदेशों की अपेक्षा जानना चाहिये । - (प्रदेशसत्व) स्थान, जानना चाहिये, करणेसु - - उदय में, य - और, अणुमाणेण – अनुमान द्वारा, एवमेएणं - यह कैसे सम्भव है ? तो इसका उत्तर यह है कि पूर्व प्रदर्शित प्रकार से पूर्वोत्कृष्ट अनुमान द्वारा जानना चाहिये । वह इस प्रकार है बंधनकरण में जघन्य योगस्थान को आदि करके उत्कृष्टयोगस्थान तक जितने प्रदेशसत्वस्थान बंध के आश्रय से प्राप्त होते हैं, उतने स्थानों का एक स्पर्धक है। इसी प्रकार संक्रमण आदि प्रत्येक करण में यथायोग्य योगस्थान जान लेना चाहिये । करणोदयसंताणं, पगइट्ठाणेसु सेसगतिगे य । भूयक्कारप्पयरो, अवट्ठिओ तह अवत्तव्वो ॥ ५१॥ शब्दार्थ करणोदयसंताणं करणों के, उदय के, सत्ता के, पगइट्ठाणेसु प्रकृतिस्थानों में, सेसगतिगे शेष तीन स्थानों में, य अवस्थित, तह अल्पतर, अवट्ठिओ और, भूयक्कारप्पयरो भूयस्कार, तथा, अवतव्व अवक्तव्य । गाथार्थ करणों के, उदय के और सत्ता के प्रकृतिस्थानों में और शेष तीन स्थानों में भूयस्कर, अल्पतर, अवस्थित तथा अवक्तव्य ये चार विकल्प जानना चाहिये । - - — इन चारों का लक्षण इस प्रकार है - - - - - [ ४०३ विशेषार्थ आठों करणों के, उदय और सत्ता के प्रकृतिस्थानों में तथा सेसगतिगे य अर्थात् स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन तीन स्थानों में प्रत्येक में चार चार विकल्प जानना चाहिये, भूयस्कर, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य । यथा - -
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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