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सत्ताप्रकरण ]
[ ३८३ तब तक उत्कृष्ट प्रदेशसत्व रहता है जब तक वे प्रथम समय में उदय को प्राप्त नहीं होती हैं।
विशेषार्थ – उत्कृष्ट योग द्वारा और उत्कृष्ट बंध काल के द्वारा देवायु और नरकायु-दोनों को बांध लेने पर उनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्व तब तक प्राप्त होता है, जब तक कि वे प्रथम समय में उदीर्ण अर्थात् उदय को प्राप्त होती हैं। इसका यह अर्थ है कि बंध से लेकर उदय होने के प्रथम समय तक देवायु और नरकायु इन दोनों का उक्त प्रकार से उत्कृष्ट प्रदेशसत्व पाया जाता है तथा ,
सेसाउगाणि नियगेसु चेव आगम्म पुव्वकोडीए।
सायबहुलस्स अचिरा बंधते जाव नोवड्ढे (?)॥ ३३॥ शब्दार्थ – सेसाउगाणि – शेष आयुकर्मों का, नियगेसु - अपने अपने भव में, च - और, एव - ही, आगम्म - आकर (उत्पन्न होकर), पुव्वकोडीए - पूर्व कोटि प्रमाण, सायबहुलस्स - अधिक सातावेदनीय का, अचिरा - अल्पकाल में, बंधते – बंध के अंत में, जाव – जब तक, नोवट्टे – अपवर्तना न करे।
___गाथार्थ – शेष आयुकर्मों को पूर्व कोटि प्रमाण बांध कर और अपने अपने भव में उत्पन्न होकर अधिक सातावेदनीय का अनुभव करते हुए अल्पकाल में मरण के सन्मुख हो समान जातीय आयु के बंध में जब तक अपवर्तना न करे तब तक के जीव अपनी अपनी आयु के उत्कृष्ट प्रदेशसत्व के स्वामी होते हैं।
विशेषार्थ – शेष आयु अर्थात् तिर्यंच और मनुष्य आयु को पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट बंधकाल से और उत्कृष्ट योगों से बांधकर और अपने अपने भव में आकर साताबहुल होते हुए अपनी अपनी आयु को यथायोग्य अनुभव करता है। (सुखी जीव के बहुत से आयु-पुद्गल निर्जीण नहीं होते हैं, इस कारण यहां साता पद ग्रहण किया है।) तत्पश्चात् बंध के अंत में अचिरकाल अर्थात् उत्पत्ति समय बाद अन्तर्मुहूर्त मात्र ही रहकर मरणोन्मुख होता हुआ उत्कृष्ट बंधकाल और उत्कृष्ट योग से परभव सम्बन्धी अन्य समान जातीय आयु को बांधता है अर्थात् यदि मनुष्य है तो आगामी भव की मनुष्यायु को और यदि तिर्यंच है तो आगामी भव की तिर्यंचायु बांधता है। तत्पश्चात् उस आयु को बांधने के अंतिम समय में जब तक उस आयु का अपवर्तन नहीं करता है तब तक उस साताबहुल मनुष्य के मनुष्यायु का और तिर्यंच के तिर्यंचायु का उत्कृष्ट प्रदेशसत्व पाया जाता है। क्योंकि उसके उस समय अपने भव के कुछ कम आयुदलिक हैं और समान जातीय परभव की आयु के पूरे दलिक हैं। इस कारण उस समय उसके उत्कृष्ट प्रदेशसत्व पाया जाता है। बंध पूर्ण होने के अनन्तर वेद्यमान आयु का दूसरे समय में अपवर्तन कर सकता है। इसलिये बंध के अंतिम समय में यह पद कहा है तथा –