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________________ सत्ताप्रकरण ] [ ३७५ शब्दार्थ – बंधहयहयहउप्पत्तिगाणि – बंध, हत, हत-हतोत्पत्तिक, कमसो - क्रमशः, असंखगुणयाणि – असंख्यातगुणित, उदयोदीरणवज्जाणि - उदय, उदीरणा को छोड़कर, होतिहोते हैं, अनुभागठाणाणि - अनुभाग (सत्व) स्थान। गाथार्थ – उदय और उदीरणा जन्य स्थानों को छोड़कर बंधोत्पत्तिक, हतोत्पत्तिक और हतहतोत्पत्तिक अनुभागसत्वस्थान क्रम से असंख्यात गुणित होते हैं। विशेषार्थ – अनुभागस्थान तीन प्रकार के हैं, यथा – बंधोत्पत्तिक, हतोत्पत्तिक और हतहतोत्पत्तिक। जिन अनुभागस्थानों की बंध से उत्पत्ति होती है वे बंधोत्पत्तिकस्थान कहलाते हैं - बन्धादुत्पत्तिर्येषां (अनुभागस्थानानां) तानि बंधोत्पत्तिकानि। वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण होते हैं। क्योंकि उनके कारण असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। ___ उद्वर्तना और अपवर्तना करण के वश वृद्धि और हानि के द्वारा अन्य अन्य प्रकार के जो अनुभागस्थान विचित्रता धारण करने वाले होते हैं, वे हतोत्पत्तिक स्थान कहलाते हैं - उदवर्तनापवर्तनाकरणवशतो वृद्धिहानिभ्यामन्यथाऽन्यथा यान्यनुभागस्थानानि वैचित्र्यभान्जि भवन्ति तानि हतोत्पत्तिकान्युच्यन्ते। अर्थात् पूर्व अवस्था के विनाशरूप घात से जिनकी उत्पत्ति होती है वे हतोत्पत्तिक स्थान पूर्व के बंधोत्पत्तिक स्थानों से असंख्यातगुणित होते हैं। क्योंकि एक-एक बंधोत्पत्तिकस्थान में नाना जीवों की अपेक्षा उद्वर्तना और अपवर्तना के द्वारा असंख्यात भेद कर दिये जाते है। जो अनुभागस्थान स्थितिघात से और रसघात से अन्य प्रकार की अवस्था होने से उत्पन्न होते है वे हतहतोत्पत्तिक अनुभागस्थान कहलाते हैं - यानि पुनः स्थितिघातेन रसघातेन चान्यथाऽन्यथाभवनादनुभागस्थानानि जायन्ते तानि च हतहतोत्पत्तिकान्युच्यते। अर्थात् हत यानि उद्वर्तना अपवर्तना के द्वारा घात होने पर पुनः हत अर्थात् स्थितिघात और रसघात के द्वारा घात होने से जिनकी उत्पत्ति होती है वे हतहतोत्पत्तिकअनुभागस्थान हैं। ये अनुभागस्थान उद्वर्तना, अपवर्तना जनित अनुभागस्थानों से असंख्यातगुणित होते हैं। उक्त तीन प्रकार के अनुभाग सत्वस्थानों का स्वरूप बतलाने के बाद अब गाथा के आशय को स्पष्ट करते हैं कि जो उदय से और उदीरणा से प्रति समय क्षय होने से अन्य अन्य प्रकार के अनुभागस्थान उत्पन्न होते है, उनको छोड़कर शेष बंधोत्पत्तिक आदि अनुभागस्थान क्रम से असंख्यातगुणित कहना चाहिये। प्रश्न - उदय और उदीरणा जनित अनुभागस्थानों को छोड़ने का क्या कारण है ?
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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