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________________ [ ३२९ उदयप्रकरण ] और तन्निमित्तक गुणश्रेणी को करता है और उसे करता हुआ दोनों ही गुणश्रेणियों के शीर्ष पर पहुँचता है, उस समय कोई मिथ्यात्व को प्राप्त होता है, तब उसके मिथ्यात्व का उत्कृष्ट प्रदेशोदय होता है और वह एक समय मात्र का होता है, इस कारण सादि और अध्रुव है। उससे अन्य सभी प्रदेशोदय अनुत्कृष्ट है और वह भी दूसरे समय में होता है अतः सादि है । अथवा वेदक सम्यक्त्व से गिरने वाले के सादि है । उस स्थान को अप्राप्त जीव के अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प पूर्व के समान जानना चाहिये । इन सैंतालीस प्रकृतियों और मिथ्यात्व के कहने से शेष रहे जघन्य और उत्कृष्ट रूप विकल्प दो प्रकार के हैं, यथा सादि और अध्रुव। इन दोनों को पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है। पूर्वोक्त से शेष रही एक सौ दस अध्रुवोदयी प्रकृतियों के जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट रूप सभी विकल्प दो प्रकार के ( सादि, अध्रुव) जानना चाहिये। क्योंकि ये अध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं । इस प्रकार प्रदेशोदय की सादि अनादि प्ररूपणा जानना चाहिये । अब स्वामित्व का कथन करते हैं । गुणश्रेणी निरूपण स्वामित्व दो प्रकार का है उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व और जघन्य प्रदेशोदय स्वामित्व । इनमें उत्कृष्ट प्रदेशोदय स्वामित्व का प्रतिपादन करने के लिये होने वाली सभी गुणश्रेणियों का निरूपण करते हैं - - सम्मत्तुप्पासावय-विरए संजोयणा विणासे य। दंसण - मोहक्खवगे, कसाय उवसामगुवसंते ॥ ८ ॥ खवगे य खीणमोहे, जिणे य दुविहे असंखगुणसेढी । उदओ तव्विवरीओ, कालो संखेज गुणसेढी ॥ ९ ॥ शब्दार्थ सम्मत्तुप्पा सम्यक्त्व की उत्पति में, सावय सर्वविरति में संजोयणाविणासे संयोजना ( अनन्तानुबंधी) कषायों के विनाश में, य दंसण मोहक्खवगे - दर्शनमोह के क्षपणों में, कसाय उवसामग कषायों के उपशम, उवसंते उपशांत मोह में । खवगे जिन भगवान में, य - - — श्रावक (देशविरति), विरए - और, — - क्षपण में (कषायों के क्षपण में) य - और, खीणमोहे – क्षीणमोह में, जिणेऔर, दुविहे – दोनों प्रकार के ( सयोगि अयोगि), असंखगुणसेढी
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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