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________________ [ २६९ उपशमनाकरण ] प्रकार सम्यक्त्व के होने पर जीव को वस्तुओं का यथार्थ दर्शन हो जाता है, उस समय इस आत्मा को अत्यन्त तात्त्विक आनन्द होता है जैसे कि औषधि के सेवन से व्याधि के दूर हो जाने पर वह व्यक्ति आनन्द का अनुभव करता है तथा - तं कालं बीयठि तिहाणुभागेणं ( भागं तु) देसघाइत्थ । सम्मत्तं सम्मिस्सं मिच्छत्तं सव्वघाईओ ॥ १९ ॥ शब्दार्थ - तं काल – उस समय, बीयठि – दूसरी स्थिति के दलिक को, तिहाणुभागेणंअनुभाग भेद तीन प्रकार के, देसघाइ – देशघाति, त्थ – उसमें, सम्मत्तं मिश्र सहित, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व, सव्वधाईओ - - सम्यक्त्व, सम्मिस्सं सर्वघाति । - गाथार्थ – उस समय ( मिथ्यात्व क्षय के समय) अनुभाग (रस) भेद से दूसरी स्थिति के दलिक को तीन प्रकार का करता है । उसमें सम्यक्त्वमोहनीय भाग देशघाती है और मिश्र और मिथ्यात्व सर्वघाती है। विशेषार्थ उस काल में अर्थात् जिसके अनन्तर समय में औपशमिक सम्यग्दृष्टि होगा, उस प्रथमस्थिति के चरम समय में मिथ्यादृष्टि रहता हुआ भी द्वितीयस्थितिगत दलिक के अनुभाग को भेदन करके तीन प्रकार का करता है, यथा - शुद्ध, अर्ध शुद्ध और अशुद्ध । इनमें सम्यक्त्व भाग शुद्ध है और वह देशघाती रस से युक्त होने के कारण देशघाती है। सम्यग्मिथ्यात्व भाग अर्द्धविशुद्ध है और वह सर्वघाती रस से संयुक्त होने के कारण सर्वघाती है तथा मिथ्यात्व अशुद्ध है और वह भी सर्वघाती है । इसी बात का संकेत करने के लिये गाथा में 'सम्मिस्सं - संमिश्र ' पद दिया है अर्थात् मिश्रसहित मिथ्यात्व (सम्यग्मिथ्यात्व) सर्वघाती है तथा - — सम्यक्त्व - पढमे समए थोवो, सम्मत्ते मीसए असंखगुणो । अणुसमयमवि य कमसो, भिन्नमुहुत्ता हि विज्झाओ ॥ २० ॥ शब्दार्थ . पढमे समए स्तोक (अल्प) सम्मत्ते प्रथम समय में, थोवो में, मीसए - मिश्र में, असंखगुणो असंख्यात गुण, अणुसमयमवि - प्रतिसमय में, य और, कमसो - अनुक्रम से, भिन्नमुहुत्ता - अन्तर्मुहूर्त तक, हि - तत्पश्चात्, विज्झाओ - विध्यातसंक्रम | — -- - - गाथार्थ सम्यक्त्व प्राप्त करने के प्रथम समय में सम्यक्त्वमोहनीय में अल्प प्रदेशों का निक्षेप करता है और मिश्रमोहनीय में, असंख्यात गुणे प्रदेश निक्षिप्त करता है। इस प्रकार अनुक्रम से अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त प्रतिसमय प्रदेश निक्षेप करता है । तत्पश्चात विध्यातसंक्रम प्रवृत्त होता है ।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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