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________________ उदीरणाकरण ] [ २३७ खवणाए विग्यकेवल संजलणाण य सनोकसायाणं। सयसयउदीरणंते निदा पयलाणमुवसंते॥७०॥ शब्दार्थ – खवणाए - क्षपक के, विग्यकेवल संजलणाण – अन्तराय, केवलद्विक, संज्वलन कषायों की, य - और, सनोकसायाणं – नोकषायों सहित, सयसय – अपनी अपनी, उदीरणंते - उदीरणा के अंत में, निहापयलाणं – निद्रा और प्रचला की, उवसंते - उपशान्तमोह में। .. गाथार्थ – क्षपक के अन्तरायपंचक, केवलद्विक और नौ नोकषायों सहित संज्वलन कषायों की जघन्य अनुभाग-उदीरणा अपनी-अपनी उदीरणा के अंत में होती है। निद्रा और प्रचला की जघन्य अनुभाग-उदीरणा उपशांतमोह में होती है। विशेषार्थ - कर्मक्षपण के लिये उघत क्षपक के पांच प्रकार के अन्तराय, केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, संज्वलनचतुष्क और नौ नोकषाय इन बीस प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की उदीरणा अपनी अपनी उदीरणा के अंतिम समय में होती है। इनमें से पांच प्रकार के अंतराय केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण इन सात प्रकृतियों की जघन्य अनुभाग-उदीरणा क्षीणकषाय के उदीरणा के अंतिम समय में होती है। तीनों संज्वलन कषायों (क्रोध, मान, माया) और तीनों वेदों की जघन्य अनुभाग उदीरणा अनिवृत्तिबादरगुणस्थानवर्ती के अपनी अपनी उदीरणा के अंतिम समय में होती है। छह नोकषायों की जघन्य अनुभाग-उदीरणा अपूर्वकरणगुणस्थान के चरम समय में होती है तथा निद्रा और प्रचला की जघन्य अनुभाग-उदीरणा उपशान्तमोह गुणस्थान में पाई जाती है। क्योंकि उस गुणस्थानवर्ती जीव विशुद्ध होता है। तथा – निहानिहाईणं पमत्तविरए विसुज्झमाणम्मि। वेयगसम्मत्तस्स उ सगखवणोदीरणाचरमे॥ ७१॥ शब्दार्थ – निहानिहाईणं – निद्रानिद्रादि की, पमत्तविरए - प्रमत्त विरत, विसुज्झमाणम्मि- विशुद्धमान, वेयगसम्मत्तस्स - वेदक सम्यक्त्व की, उ - और, सगखवणोदीरणाचरमे - स्वक्षपक की उदीरणा के चरम समय में। गाथार्थ – विशुद्ध्यमान प्रमत्तविरत के निद्रा-निद्रा प्रचला-प्रचला स्त्यानर्धि की जघन्य अनुभाग-उदीरणा होती है तथा वेदकसम्यक्त्व की अपने क्षपणकाल के चरम उदीरणा समय में जघन्य अनुभाग-उदीरणा होती है। विशेषार्थ – 'निद्दानिद्दाईणं' अर्थात् निद्रा-निद्रा प्रचला-प्रचला और स्त्यानर्धि इस निद्रात्रिक
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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