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________________ २२६ ] [ कर्मप्रकृति शब्दार्थ - घाईणं – मोहनीय कर्म को छोड़ कर घातिकर्मों की, अजघन्ना - अजघन्य, दोण्हं - दो की (नाम और गोत्र की), अणुक्कोसियाओ - अनुत्कृष्ट, तिविहाओ - तीन प्रकार की, वेयणिएणुक्कोसा -- वेदनीय की अनुत्कृष्ट, अजहन्ना - अजघन्य, मोहणीए – मोहनीय की, उ - और। । साइ अणाई - सादि-अनादि, धुव - ध्रुव, अधुवा – अध्रुव, य - और, तस्सेसिगा - उसके शेष विकल्प, य - और, दुविगप्पा – दो विकल्प, आउस्स - आयु के, साइ अधुवा - सादि अध्रुव, सव्वविगप्पा – सर्व विकल्प, उ - और, विनेया – जानना चाहिये। गाथार्थ - मोहनीय को छोड़ कर तीन घाति कर्मों की अजघन्य, दो कर्मों की अनुत्कृष्ट उदीरणा तीन प्रकार की होती है। वेदनीय की अनुत्कृष्ट और मोहनीय की अजघन्य उदीरणा सादि अनादि ध्रुव और अध्रुव रूप चारों प्रकार की होती है तथा इनके शेष विकल्प दो प्रकार के होते हैं तथा आयुकर्म के सभी विकल्प सादि और अध्रुव जानना चाहिये। विशेषार्थ – मोहनीय को छोड़कर शेष तीनों घातिकर्मों की अजघन्य अनुभाग-उदीरणा तीन प्रकार की होती है, यथा - अनादि, ध्रुव, अध्रुव। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - इन कर्मों की क्षीणकषायी जीवस्थिति में समयाधिक आवलिका काल शेष रहने पर जघन्य अनुभाग-उदीरणा होती है, वह सादि और अध्रुव है। शेषकाल उक्त कर्मों की उदीरणा अजघन्य होती है और वह ध्रुवउदीरणा रूप होने से अनादि है । ध्रुव और अध्रुव विकल्प क्रमशः अभव्य और भव्य की अपेक्षा समझना चाहिये। दोण्हं अर्थात् नाम और गोत्र इन दो कर्मों की अनुत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा तीन प्रकार की होती है यथा – अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वह इस प्रकार है कि - ___ इन दोनों कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा सयोगीकेवली में होती है। अतः वह सादि और अध्रुव है। शेष काल में उनकी उदीरणा अनुत्कृष्ट होती है और वह ध्रुव उदीरणा होने से अनादि है। ध्रुव और अध्रुव पूर्ववत् अभव्य और भव्य की अपेक्षा जानना चाहिये। वेदनीय में अनुत्कृष्ट और मोहनीय में अजघन्य अनुभाग-उदीरणा चार प्रकार की है, यथा - सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव। वह इस प्रकार है कि - उपशमश्रेणी में सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में जो सातावेदनीय कर्म बांधा है, उसकी सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त होने पर जो प्रथम समय में उदीरणा होती है, वह उत्कृष्ट है और वह सादि तथा अध्रुव है।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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