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________________ उदीरणाकरण ] [ १८३ स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं। तदनन्तर उक्त ५३ प्रकृतिक स्थान में प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के उच्छ्वास नाम को मिलाने पर चउवन प्रकृतिक स्थान होता है। यहां पर भी पूर्व की तरह स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं । अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के उच्छ्वास के अनुदय और उद्योत नाम का उदय होने पर चउवन प्रकृतियां होती हैं। यहां पर भी पूर्व की तरह स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं। इस प्रकार चउवन प्रकृतिक उदीरणास्थान में स्वमत से आठ भंग और मतान्तर से सोलह भंग प्राप्त होते हैं। - इसके बाद भाषापर्याप्ति से पर्याप्त जीव के श्वासोच्छ्वास सहित चउवन प्रकृतिक स्थान में स्वर के मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी पूर्व की तरह स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं। अथवा प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के स्वर के अनुदय तथा उद्योत के उदय होने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग प्राप्त होते हैं । इस प्रकार पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान में स्वमत से सर्व भंग आठ होते हैं और मतान्तर से सोलह भंग होते हैं। तत्पश्चात् स्वर सहित पचपन प्रकृतिक स्थान में उद्योत के मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी स्वमत से चार भंग होते हैं और मतान्तर से आठ होते हैं। इस प्रकार विक्रिया करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के भंगों की स्वमत से सर्व संख्या अट्ठाईस [४+४+८+८+४=२८] और मतान्तर से छप्पन [८+८+१६+१६+८=५६] होती है । उदीरणास्थानों और उनके स्वमत परमत के भंगों की संख्या सहित प्रारूप इस प्रकार है - उदीरणा स्थान भंग स्वमत परमत < < ५१ प्रकृतिक ५३ प्रकृतिक ५४ प्रकृतिक ५५ प्रकृतिक ५६ प्रकृतिक योग = ५ <
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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