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उदीरणाकरण ]
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प्रत्येक और अयश:कीर्ति के साथ एक ही भंग होता है। क्योंकि तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव के साधारण और यश:कीर्ति का उदय नहीं होता है और उदय के अभाव से उदीरणा भी नहीं होती है, इसलिये तदाश्रित भंग भी प्राप्त नहीं होते हैं। इस प्रकार पचास प्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की संख्या ग्यारह होती है।
तदनन्तर शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त इसके (एकेन्द्रिय जीव के) पचास प्रकृतियों में पराघात के मिलाने पर इक्यावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इस स्थान में छह भंग होते हैं यथा - बादर के प्रत्येक साधारण यश:कीर्ति और अयश:कीर्ति पदों की अपेक्षा चार भंग तथा सूक्ष्म के प्रत्येक और साधारण की अपेक्षा अयश:कीर्ति के साथ दो भंग होते हैं । विक्रिया करने वाले बादर वायुकायिक जीव के शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होने पर पराघात को पूर्वोक्त पचास में मिलाने पर इक्यावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है । इस प्रकार इक्यावन प्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की सर्व संख्या सात होती है।
तत्पश्चात् प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ्वास के मिलाने पर बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इस स्थान में भी भंग पूर्व के समान छह होते हैं । अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ्वास के उदय नहीं होने पर और आतप, उद्योत में से किसी एक के उदय होने पर बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी छह भंग होते हैं यथा – उद्योत सहित बादर के प्रत्येक, साधारण यश:कीर्ति और अयश:कीर्ति पदों से प्रत्येक के चार भंग होते हैं । आतप सहित बादर जीव के प्रत्येक, यश:कीर्ति, अयश:कीर्ति पदों के साथ दो भंग होते हैं। प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त और विक्रिया करने वाले बादर वायुकायिक के उच्छ्वास को मिलाने पर पूर्वोक्त इक्यावन प्रकृति वाला स्थान बावन प्रकृतिक हो जाता है और उसमें पूर्व के समान एक ही भंग होता है। तैजसकायिक और वायुकायिक के आतप, उद्योत और यश:कीर्ति प्रकृतियों के उदय के अभाव से उदीरणा नहीं होती है। इसलिये तदाश्रित भंग भी यहां प्राप्त नहीं होते हैं । इस प्रकार बावन प्रकृतिक उदीरणा स्थान में भंगों की सर्व संख्या तेरह होती है।
प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के उच्छ्वास सहित बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान में आतप और उद्योत में से किसी एक के मिलाने पर तिरेपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इस स्थान में वे ही छह भंग होते हैं, जो पहले आतप उद्योत में से किसी एक के साथ बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान मे कहे गये हैं।
इस प्रकार एकेन्द्रिय में भंगों की सर्व संख्या बयालीस (५+११+७+१३+६=४२) होती है।