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________________ उदीरणाकरण ] [ १७५ मिश्रकाययोग में वर्तमान सयोगी केवली तीर्थंकर जानना चाहिये। ___ इसी बावन प्रकृतिक स्थान में पराघात उच्छ्वास प्रशस्त अप्रशस्त विहायोगति में से कोई एक विहायोगति, सुस्वर, दुःस्वर में से कोई एक स्वर नामकर्म इन चार प्रकृतियों को मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इसे औदारिककाययोग में वर्तमान सयोगीकेवली करते हैं। पराघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति और सुस्वर नाम को तिरेपन प्रकृतिक स्थान में प्रक्षेप करने पर सत्तावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इसके उदीरक औदारिककाययोग में वर्तमान तीर्थंकर सयोगीकेवली होते हैं। इसी सत्तावन प्रकृतिक स्थान में से वचनयोग का निरोध करने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है तथा इन छप्पन प्रकृतिक स्थानों में से उच्छ्वास नाम का निरोध कर देने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणा स्थान होता है अथवा अतीर्थंकर केवली (सामान्य केवली) के पूर्वोक्त छप्पन प्रकृतिक स्थान में से वचनयोग का निरोध करने पर पचपन प्रकृतिक स्थान होता है और उनमें से अर्थात् सामान्य केवली संबंधी स्थान में से उच्छ्वास के निरोध कर देने पर चौपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर बावन और चउवन प्रकृतिक स्थानों को छोड़ कर शेष छह स्थानों में सामान्य मनुष्यों से विलक्षण एक एक विशेष भंग. प्राप्त होता है । इसलिये केवली के सर्व भंगों की संख्या छह होती है। इनमें इकतालीस प्रकृतिक एक उदीरणा स्थान अतीर्थंकर केवली के होता है और शेष पाँच उदीरणा स्थान तीर्थंकर केवली के होते हैं। सयोगीकेवली भगवंतों में प्राप्त उदीरणास्थानों और भंगों का प्रारूप इस प्रकार है - उदीरणा स्थान भंग भंग (स्वमत से) (परमत से) ४१ प्रकृतिक यह स्थान सामान्य ४२ प्रकृतिक केवली के ही होता ५३ प्रकृतिक है। तीर्थंकर केवली १ १. यहां समचतुरस संस्थान को ही ग्रहण करने से संस्थान संबंधी छह भंग नहीं होते हैं। २. बावन और चउवन प्रकृतियों की उदीरणा केवली भगवान और सामान्य मनुष्य दोनों के होती है। इसलिये इन दोनों के भंग केवली में प्राप्त होने पर भी पुनरावृति न होने की दृष्टि से उनको यहां न गिनकर सामान्य मनुष्यों के भंगों को गिना है। यहां तो केवली भगवान में ही प्राप्त होने वाले स्थानों और उनके भंगों को बतलाया है।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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