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________________ १५६ ] [कर्मप्रकृति आहारगनरतिरिया, सरीरदुगवेयए पमोत्तूर्ण। ओरालाए एवं, तदुवंगाए तसजियाउं ॥७॥ शब्दार्थ – आहारगनरतिरिया – आहारी मनुष्य तियंच, सरीरदुगवेयए – शरीरद्विक के वेदक, पमोत्तूणं – छोड़कर, ओरालाए - औदारिक शरीर के, एवं – इसी प्रकार, तदुवंगाए - उसके अंगोपांग के, तसजियाउ - त्रस जीव। गाथार्थ – शरीरद्विक के वेदक को छोड़ कर आहारी मनुष्य और तिर्यंच औदारिक शरीर के उदीरक हैं । इसी प्रकार उसके अंगोपांग के उदीरक त्रस जीव हैं। विशेषार्थ – जो मनुष्य और तिर्यंच आहारक हैं अर्थात् ओज, लोम और प्रक्षेप इन तीन प्रकार के आहारों में से किसी एक आहार को ग्रहण करते हैं, वे औदारिकशरीर नामकर्म के उदीरक होते हैं । यह औदारिक शब्द लाक्षणिक है इसके उपलक्षण से औदारिकबंधनचतुष्क और औदारिकसंघातन के भी उदीरक होते हैं। प्रश्न – क्या सभी औदारिक शरीरधारी जीव उक्त प्रकृतियों के उदीरक होते हैं ? उत्तर - नहीं। सभी औदारिक शरीरधारी जीव तो उदीरक नहीं होते हैं। किन्तु शरीरद्विक के वेदकों को छोड़कर अर्थात् आहारक, वैक्रिय, इन दो शरीरों में स्थित जीवों को छोड़ कर शेष सभी औदारिक शरीरधारी जीव उदीरक होते हैं । शरीरद्विक के वेदकों को छोड़ने का कारण यह है कि जब उनके औदारिक शरीर नामकर्म का उदय ही नहीं है तब उसके उदीरक भी कैसे हो सकते है? तथा इसी प्रकार से 'तदुवंगाए' अर्थात् औदारिक अंगोपांग नामकर्म के उदीरक औदारिक शरीरधारी जीव ही होंगे। लेकिन इतनी विशेषता है कि उसके उदीरक केवल त्रसकायिक जीव ही जानना चाहिये, स्थावर नहीं। क्यों कि स्थावरों के अंगोपांग नामकर्म के उदय का अभाव है तथा – वेउव्विगाए सुरनेरईया आहारगा नरो तिरिओ। सन्नी, बायरपवणो, य लद्धिपजत्तगो होजा॥८॥ शब्दार्थ – वेउब्विगाए – वैक्रिय शरीर के, सुरनेरईया - देव और नारक, आहारगा - आहारी, नरो - मनुष्य, तिरिओ - तिर्यंच, सन्नी - संज्ञी, बायर – बादर, पवणो - वायुकायिक जीव, य - और, लद्धिपज्जत्तगो - लब्धिपर्याप्त, होज्जा – होते हैं। _ विशेषार्थ – वैक्रिय शरीर नामकर्म यह उपलक्षण है। अतः वैक्रिय -बंधनचतुष्क और वैक्रियसंघातन के उदीरक वे देव और नारक होते हैं जो आहारी (आहारक) हैं अर्थात् ओज, लोम में से किसी एक आहार को ग्रहण करते हैं और जो मनुष्य या तिथंच संज्ञी हैं और वैक्रियलब्धि वाले हैं
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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