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________________ ७८ ] [ कर्मप्रकृति घातित्व की अपेक्षा सर्वाति और स्थान की अपेक्षा द्विस्थानक रस से युक्त मंद अनुभाग वाले जो रसस्पर्धक हैं, वे जब संक्रांत होते हैं, तब वह उनका जघन्य अनुभागसंक्रम है। यहां यद्यपि मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यायज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और अन्तराय पंचक इन प्रकृतियों का बंध के समय एक स्थानक भी रस प्राप्त होता है, तथापि क्षयकाल में पूर्वबद्ध द्विस्थानक भी रस संक्रांत होता है, केवल एक स्थानक रस संक्रांत नहीं होता है। इसलिये यह जघन्यसंक्रम के विषय रूप से इनका एक स्थानक रस नहीं कहा है। इस प्रकार जघन्य अनुभागसंक्रम का परिमाण जानना चाहिये। सादि अनादि प्ररूपणा . अब सादि अनादि प्ररूपणा करते हैं। वह दो प्रकार की है - १. मूल प्रकृति सादि अनादि प्ररूपणा और २. उत्तर प्रकृति सादि अनादि प्ररूपणा। जिनका यहां विवेचन करते हैं - अजहण्णो तिण्णि तिहा, मोहस्स चउव्विहो अहाउस्स। एवमणुक्कोसो, सेसिगाण तिविहो अणुक्कोसो॥४९॥ सेसा मूलपगईसु, दुविहा, अह उत्तरासु अजहण्णो। सत्तरसण्ह चउद्धा, तिविकप्यो सोलसण्हं तु॥५०॥ तिविहो छत्तीसाए, णुक्कोसोऽह नवगस्स च चउद्धा। एयासिं सेसा सेस-गाण सव्वे य दुविगप्पा॥५१॥ शब्दार्थ – अजहण्णो – अजघन्य, तिण्णि - तीन का (ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय), तिहा – तीन प्रकार का, मोहस्स – मोहनीय कर्म का, चउब्विहो - चार प्रकार का, अहाउस्स – तथा आयुकर्म का, एवमणुक्कोसो – इसी प्रकार अनुत्कृष्ट, सेसिगाण – शेषकर्मों का, तिविहो – तीन प्रकार का, अणुक्कोसो - अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रम। सेसा – शेष अनुभागसंक्रम, मूलपगईसु - मूल प्रकृतियों का, दुविहा – दो प्रकार का, अह - अब, उत्तरासु - उत्तर प्रकृतियों का, अजहण्णो – अजघन्य, सत्तरसण्ह – सत्रह प्रकृतियों का, चउद्धाचार प्रकार का, तिविकप्पो – तीन प्रकार का, सोलसण्हं – सोलह प्रकृतियों का, तु - और। तिविहो – तीन प्रकार का, छत्तीसाए - छत्तीस प्रकृतियों का, अणुक्कोसो - अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रम, अह – तथा, नवगस्स - नौ प्रकृतियों का, य - और, चउद्धा – चार प्रकार का, एयासिं – इनके, सेसा - बाकी के, सेसगाण – शेष प्रकृतियों के, सव्वे - सब अनुभागसंक्रम, य - और, दुविगप्पा - दो विकल्प (भंग)
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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