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१३. मधुधूली धूली समी, गुरु-शिक्षा आगे ।
धन्य स्वयं श्रुति सांभळी, मुनिवर बड़भागे ।। १४. बगसीसां तीजे दिने, कालू निज कर स्यूं
लिखे, मगन नै ही मिली रिझवारी धुर स्यूं ' ।। १५. अवर श्रमण- श्रमणी गुणी, जह-जोग पिछाणी ।
दृग-दौलत डालिमगणी, बगसै वर नाणी ।। १६. शुक्ल भाद्रपद द्वादशी, आखिर अब आई ।
सायंकाले स्वाम री, तनु- छवि पलटाई ।। १७. श्री कालू ‘गुरुदेव' नै, प्रतिक्रमण सुणायो ।
सन्निकटे आयू लखी, अनशन उचरायो'।। १८. शरणां स्व मुख सुणावतां, सुरलोक सिधाया ।
सप्तम आसन - अधिपती, डालिम गणराया । । १६. दूजै दिन गुरु- देह रो, संस्कार करायो ।
उच्छब ठाट-हगाम स्यूं, लौकिक कहिवायो । । २०. जय-जय शासन-साहिबा ! महिमा महि भारी ।
मोहन मूरति ऊपरै, बलि - बलि मैं वारी ।। २१. डालगणीश्वर री कही, संक्षिप्त कहाणी ।
विस्तृत रूप बखाणवा अवसर अगवाणी ।। २२. एकादशमी ढाळ में, गुरु- गरिमा गाई । कालू- वृत्त बखाणस्यूं, शुभ बेला आई ।।
कलश
२३. आचार्यपद - पर्याय संयम सर्व आयू स्वाम जी, सह अर्धग्यार तंयाल सत्तावन सुहायन रो सझी । गण-सिन्धु-उलसन इन्दु, सद्गुण-सिन्धु तेजे दिनमणी, सुर-वर्ग-सेवित स्वर्ग- श्री स्वीकरी श्री डालिमगणी ।।
१. मन्त्री मुनि को समुच्चय के वजन और बारी से मुक्त रहने का पुरस्कार प्राप्त हुआ । २. मन्त्री मुनि श्री मगनलालजी ने डालगणी को अनशन करवाया ।
३. यह पद्य उस समय का है, जब आचार्यश्री ने डालिम - चरित्र की रचना नहीं की थी। प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन- काल तक डालिम - चरित्र मुद्रित होकर आ चुका है।
उ. १, ढा. ११ / ६३