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३३. भक्ता ठाकुर लाडणूं रे, आणंदसिंह सिवाय। ___डालिम दिखलाई नहीं रे, किणनै अपणी दाय।। ३४. युवाचार्य आचार्य रो रे, अननुमेय अनुबंध ।
डालिम क्यूं नहिं निर्वह्यो रे, ओ समुचित संबंध? ३५. निश्चय ही होणो चहै रे, कारण को अविवाद। पण आ है अनभिज्ञता रे, वितरक बेबुनियाद ।।
लावणी छंद ३६. यद्यपि डालिम आजीवन गोपन कीन्हो,
यावत प्रच्छन्न रूप में युवपद दीन्हो। केवल विस्मयबोधक ही वृत्ति रही है,
मैं अंतरंग में जा आ बात कही है।। ३७. प्रत्यक्ष काम अरु राम परोक्ष सुहावै,
ओ उदाहरण डालिम साकार करावै।। व्याख्यान विहार अनेक कार्य उल्लेखी,
डालिम री विस्मय बोधक वृत्ती देखी।। ३८. कालू. कीम्मत डालिम खूब करी है,
निश्चिन्त निरन्तर अन्तर-आंख ठरी है। निम्नोक्त निरूपण सुणो ध्यान में ल्याओ,
डालिम कालू अनुबंध स्वयं अजमाओ।। ३६. संभाळ सत्यां री जब-जब आप कराता,
तब-तब कालू नै निश्चित पास बिठाता। स्थिरवासी सत्यां लाडणूं काम पड्यो जब,
कालू नै ही सुजानगढ़ स्यूं भेज्या तब।। ४०. बगसीसां प्रायश्चित श्री कालू कर स्यूं
लिखवाता डालिम, जद-तद महर नजर स्यूं। जो-जो भी बातां अंतरंग शासण री,
कालू रो अंकन, सहज प्रतिष्ठा गण री।। ४१. संस्कृत-प्राकृत-पाठी जब कब भी आता,
डालिम परबारा कालू पास पठाता। १. देखें प. १ सं. २१ २. स्थिरवासिनी साध्वियों में व्यवस्था संबंधी गड़बड़ी होने पर अनेक बुजुर्ग और अनुभवी
साधु-साध्वियों के होने पर भी सुजानगढ़ से कालूगणी को ही लाडनूं भेजा गया।
६० / कालूयशोविलास-१