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दोहा ४. गादी-ओच्छब शुभ घड़ी, ओप रह्या गण-ईश। गुण-वर्णन वर्णन बहु, विविध हुई बगसीस।।
लावणी छंद ५. माणक आया मघवा-प्रतिछाया जाणी,
पलटै पर्याय द्रव्य ध्रुवता पहचाणी। बण स्यामखोर गादी री सेवा साधी,
कालू मघवा ज्यूं माणक-मीट अराधी।। ६. चिंतन वर्तन में यद्यपि अंतर रहतो,
पर कभी नहीं सीमा-अतिक्रम कर बहतो। गति में स्थिति में धृति में नहिं कहीं तरलता, बढ़तो वर्चस्व बढ़ी व्यक्तित्व-विरलता।।
शासन-स्वामी रे भारी, श्री माणक महिमाधारी। सेवा सारी रे सारी, श्री कालू विमल विचारी।।
७. माणक महितल विचरता रे, करता पावन देश।
हरता भ्रम संसार रो रे, दे जिनमत संदेश।। ८. पच्चासै चउमास री रे, महर शहर सरदार।
प्रवचन धर्म-प्रभावना रे, अधिक कियो उपकार ।। ६. हरियाणा में हूंस स्यूं रे, विचऱ्या शेखैकाळ। ___माघोत्सव मर्याद रो रे, हांसी पुर सुविशाळ।। १०. चउमासो इक्कावनै रे, चूरू चित धर चूंप।
बलि जयपुर जयश्री वरी रे, भिक्षूशासण-भूप।। ११. बीदासर में तेपनै रे, वर्षा ऋतु रो वास।
अब अंतिम चौमास है रे, सुजानगढ़ सोल्लास।। १२. आकस्मिक आसोज में रे, आमय गुरुवर-अंग।
सम परिणामां स्वामजी रे, सहन करै मन रंग।।
१. लय : कोरो कलसो जल भर्यो काइ धरती शोष्यां जाय
उ.१, ढा.६ / ७५