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ढाळः ५.
दोहा १. गुरु मघवा सुर-गमन लख, कालू दिल सुकुमार।
भारी विरह विखिन्न ज्यूं कृषिबल बिन जलधार ।। २. पलक-पलक प्रभु-मुख-वयण-स्मरण-समीरण लाग।
छलक-छलक छलकण लग्यो, कालू-हृदय-तड़ाग।। ३. मैं जाण्यो प्रभु-चरण री, युग-युग करस्यूं सेव।
पांच बरस में ही प्रवर, ओ विरहो गुरुदेव!
मनड़ो लाग्यो रे, चितड़ो लाग्यो रे, खिण-खिण समरूं गुरु! थारो उपगार रे, कियां बिसराऊ म्हारा हिवडै रा हार!
४. नेहड़लां री क्यारी रो म्हारी रो के आधार रे? ___सूक्यो सोतो जो इकलोतो सूनो-सो संसार।। ५. मूरतड़ी मनहारी थांरी जिनवर रै अनुहार रे। ___ म्हारै रोम-रोम में मति में, स्मृति में एकाकार।। ६. मुखड़े रो बो मुळको पळको पळ-पळ दिव्य दिदार रे।
हळको पड़ग्यो भानूडै रो भळको भी निहार।। ७. चंगो अंग सुरंगो सारो चूड़िउतार रे।
जाणक सुर भोळे घड़ीजग्यो ओ मानव आकार।। ८. मेहड़लै री गाज-सो आवाज को गुंजार रे।
गिरि-गह्वर में गूंजे जूझै ज्यूं नोहत्थो ना'र।। ६. व्योम ज्यूं विशाल उज्ज्वल फेन-सो आचार रे।
निर्मल विमल कमल ज्यूं हिरदो आजीवन अविकार।। १०. सद्गुण रो आधार सज्जनता रो सिणगार रे।
सकल त्रिलोकी सार संयम-साधना साकार।। ११. आज लों निर्व्याज राज! मानी थांरी कार रे।
भाज-भाज जोतो थारै भांपण रो फुरकार ।।
१. लय : मूक म्हारो केड़लो मैं ऊभी छु हजूर
उ.१, ढा.५ / ७३