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२१. दशवैकालिक सीख सजग, आराधै सद्गुरु-आण।
विनय विवेक आदि गुण, निश्छलता स्यूं लीन्हा छाण।। २२. तीजी ढाळ रसाल बाल-वय-चरण वरण निरवाण।।
मघ-गुरु मस्तक हस्त धरायो, पायो जन्म प्रमाण।।
ढाळः ४.
दोहा
१. मिंगसर में पावस पछै, मघ मुणींद विहरंत।
मूल-नन्द सानन्द नित, सुगुरु सेव विलसंत।। २. चारुवास छापुर रही, चातुरगढ़ पद ठाण। __चन्देरी स्यूं पाधरा, आया पुर बीकाण।। ३. भैक्षवगण गणिवर विषे, श्री मघवा गणधार।
प्रथम पवित्र करी धरा, बीकानेर पधार ।। ४. मर्यादा-मोच्छब महर, जबर जमायो झण्ड।
बलि चरचा-व्याख्यान स्यूं, धार्मिक ज्योति अखण्ड।। ५. सप्तबीस वासर रही, पुनरपि कर्यो विहार।
डूंगरगढ़ मारग बही, सुखे शहर-सरदार ।।
१ गुरु-गरिमा महिमा भारी, रहै शिष्य सदा आभारी रे, गुरु-गरिमा महिमा भारी। ज्यांरी बार-बार बलिहारी रे, गुरु-गरिमा महिमा भारी।।
६. मघवा मुनिपति सादृश दिनपति, जिनपति ज्यूं अवतारी रे।
पापभीरु परमारथ-साधक, समता रस संचारी रे।। ७. विचरत बलि सरदारशहर पर पावस री रिझवारी रे। ___ पेंतालीसे पूज्य वदन-घन, बरसै अमृत-वारी रे।। ८. शहर चन्देरी छयालीसे, छाई है छवि प्यारी रे।
संतालीसे श्री बीदासर, जन्मभूमि उद्धारी रे।। ६. युग चउमासे गुरुवर पासे, विद्याभ्यास बधारी रे।
संस्कृत भाषा की अभिलाषा, खासा दिल अवधारी रे।।
१. लय : जय जश गणपति वन में
६८ / कालूयशोविलास-१