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उपलब्धि के लिए अब भी उनका प्रयास जारी है। अन्य स्रोतों से भी खोज की जा रही है। किन्तु उसकी प्रतीक्षा में ग्रन्थ के पुनर्मुद्रण को रोकना उचित नहीं लगा। प्रस्तुत परिशिष्ट के लिए मुनिश्री के प्रति आभार ज्ञापन की औपचारिकता न करके ग्रन्थ के सम्पादनं में उनकी सहभागिता को समादर देती हूं।
प्रस्तुत संस्करण के प्रूफनिरीक्षण का कार्य साध्वी जिनप्रभाजी और साध्वी कल्पलताजी ने किया। साध्वी चित्रलेखाजी, शारदाश्रीजी, अनुशासनश्रीजी और शुभप्रभाजी ने भी इस कार्य में हाथ बटाया। नामानुक्रम वाला परिशिष्ट साध्वी चित्रलेखाजी ने तैयार किया। साध्वी जिनप्रभाजी ने इसे अन्तिम रूप दिया। विशेष शब्दकोश के समाकलन में साध्वी कल्पलताजी और साध्वी विवेकश्रीजी का श्रम लगा। आचार्यवर के आशीर्वाद एवं साधु-साध्वियों के निष्ठापूर्ण परिश्रम से कालूयशोविलास का नया संस्करण नए परिवेश में पाठकों के हाथों में पहुंचेगा। पाठक अपनी परिष्कृत स्वाध्याय-रुचि का भरपूर उपयोग कर इसका रसास्वादन करते रहेंगे, ऐसा विश्वास है। सिरियारी
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ५ जुलाई २००४
कालूयशोविलास-१ / ५३