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बताई है। आप केवली भगवान का विवाह कराते हुए भी शंकित नहीं
हुए ?
चर्चा करने आए लोग मौन होकर चले गए, पर उन्होंने द्वेषवश निन्दात्मक पर्चेबाजी शुरू कर दी। राणा फतेहसिंहजी ने भी वे पर्चे देखे। राणाजी ने तेरापंथी श्रावक हीरालालजी मुरड़िया को निर्देश दिया कि प्रतिपक्षी लोग आपकी निन्दा के पर्चे छाप रहे हैं, किन्तु उस विरोध के प्रतिरोध में आपको कुछ नहीं लिखना है। मुरड़ियाजी ने राणाजी को बताया कि ऐसी छिछले स्तर की बातों का जवाब देना तेरापंथ की नीति नहीं है।
कुछ समय बाद प्रतिपक्षी लोगों ने एक बेबुनियाद बात उठाई कि पंचायती नोहरे में भट्टी जल रही थी। उसमें एक गाय गिर गई। तेरापंथी लोग सामने खड़े थे, फिर भी उन्होंने गाय को नहीं बचाया। इस आशय का पैम्फलेट राणाजी के पास पहुंचा। राणाजी ने मुरड़ियाजी से कहा कि इस भ्रान्ति का निराकरण होना चाहिए। राणाजी के निर्देश पर तेरापंथी श्रावकों ने स्पष्टीकरण दिया-चतुर्मास में पंचायती नोहरे में कोई भोज नहीं होता। भोज बिना वहां भट्टी कौन जलाएगा ? भट्टी ही नहीं है तो गाय कैसे गिरेगी ? इस स्पष्टीकरण से शहर में फैली झूठी अफवाह जड़मूल से समाप्त हो गई।
उदयपुर में छह सौ व्यक्तियों की एक स्पेशल ट्रेन मालवा-यात्रा की प्रार्थना करने आई। मालवा जाने के लिए कालूगणी कानोड़ तक पधारे। उसके बाद कार्यक्रम बदल गया। मेवाड़ के अनेक क्षेत्रों की संभाल कर कालूगणी मारवाड़ पधार गए। छठे गीत का यह विवेचन बहुत ही रोचक है।
सातवें गीत में मारवाड़ की महत्त्वपूर्ण यात्रा का वर्णन है। उस यात्रा में भी चर्चा के दो प्रसंग उपस्थित हुए। पहला प्रसंग आउवा का है। वहां प्रतिमा-पूजा पर चर्चा हुई। दूसरा प्रसंग पचपदरा का है। वहां संघ-बहिष्कृत श्रावक प्रतापजी दो यतियों को साथ लेकर कालूगणी के पास आए। स्थानकवासी मुनि कनीरामजी के ग्रन्थ 'सिद्धान्तसार' के आधार पर उन्होंने मिथ्यात्वी की क्रिया का प्रश्न उठाया। 'सिद्धान्तसार' में मिथ्यात्वी की क्रिया को आज्ञा बाहर माना गया है, जबकि जयाचार्य के 'भ्रमविध्वंसन' में उसे आज्ञा-सम्मत मान्य किया है।
कालूगणी ने प्रतापजी से कहा कि इस मान्यता का भगवती सूत्र के पाठ से मिलान कर लें। प्रतापजी अपने साथ पुस्तकों की दो पेटियां लेकर आए थे। उन्होंने दोनों यतियों को पाठ खोजने का काम सौंपा, पर उन्हें सफलता नहीं मिली। उस समय कालूगणी ने भगवती सूत्र हाथ में लिया और आठवें शतक का वह पाठ निकालकर दिखा दिया, जिसमें बालतपस्वी को मोक्षमार्ग का देशाराधक बताया
३४ / कालूयशोविलास-१