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अन्तर ढाळ मतिमन्त मुणी ! सुकुलीणी श्रमणी ! गुरु-शिक्षा धारिये। पश्चिम रयणी, ऊठ-ऊठ अक्षर-अक्षर संभारिये।। ध्रुव. मुनि पंच महाव्रत आदरिया, तजि धण कण कंचन परिवरिया। मनु कंचन गिरिवर कर धरिया।। मतिमन्त मुणी !
मूक म्हारो केड़लो मैं ऊभी छु हजूर रे।
डाभर नैणी रे। ध्रुव. कोरो कळसो जल भस्यो कांइ धरती शोष्यां जाय। बालु रे दिक्खण री चाकरी म्हारो पिउ तिरसायो जाय।।
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पुण्यसार सुख भोगवै रे, आठ नारी संघात। कमी नहीं कोई बात नी रे, हर्ष मांही दिन जात । दुख गयो विलाई रे।। देखो पुण्यसार नीं प्रबल पुन्याई सहु मन भाई रे। भाई भाई भाई रे या लोक सराई रे। देखो....
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राजिमती इम विनवै हो मुनिवर ! मन चलियो तूं घेर, थोड़ा सुखां रे कारणे हो मुनि ! क्यूं हारे नर भव फेर हो।
सुण-सुण साधजी हो मुनिवर ! पांच महाव्रत आदस्या हो मुनिवर ! मेरू जितरो भार। वमिया री बांछा करो हो मुनिवर ! लीधो संजम भार।। क सुण-सुण...
अन्तर ढाळ गहरो जी ! फूल गुलाब रो... सात सहेल्यां रै झूलरै, म्हारी गवरल गइ रे तळाव, राठोड़ !
___ गहरो जी फूल गुलाब रो। और सहेल्यां पाछी बावड़ी, म्हारी गवरळ रही रे तळाव, राठोड !
___गहरो जी फूल गुलाब रो विनय ! निभालय निजभवनम्।। तनु-धन-सुत-सदन-स्वजनादिषु, किं निजमिह कुगतेरवनम्। विनय! निभालय निजभवनम्।।ध्रुव.।।
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परिशिष्ट-३ / ३३१