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राजा ने कहा-'मुझे तो ब्राह्मण शरीफ ही लगा। वह शराब पीता है, इसका तुम्हारे पास क्या प्रमाण है?' पुरोहित बोला-'महाराज! आप ध्यान रखना। वह जब भी शराब पीकर आएगा, अपना मुंह बांधकर आएगा।'
दूसरे दिन राजा ने देखा-ब्राह्मण आज अपना मुंह बांधकर आया है। राजा को पुरोहित के कथन में सत्यता का आभास हुआ। उसने एक रुक्का लिखकर ब्राह्मण को दिया और कहा-'भंडारी के पास चले जाओ।'
ब्राह्मण खुश होकर चला। रास्ते में पुरोहित मिला। ब्राह्मण के खिले हुए चेहरे को देख पुरोहित ने पूछा-'आज तो बड़े खुश नजर आते हो। क्या मिल गया?' पुरोहित ने कहा-'यह सब आपकी कृपा है। आपने मुझे कल कला सिखाई और आज राजा ने रुक्का दे दिया।'
पुरोहित ने रुक्का ब्राह्मण के हाथ से छीन लिया। ब्राह्मण कुछ रुआंसा हुआ तो वह बोला-'मेरी कला का पुरस्कार मुझे ही मिलेगा। पांच-दस रुपये तुम्हें मिल जाएंगे, शेष सब कुछ मेरा है। गरीब ब्राह्मण राजपुरोहित से मुकाबला कैसे कर सकता था। उसने वह रुक्का राजपुरोहित को पकड़ा दिया।
. पुरोहित भंडारी के पास पहुंचा। भंडारी ने रुक्का लेकर पढ़ा। उसमें राजा ने लिखा था
रुपया दीज्यो पांच सौ, मत दीज्यो सुल्लाख।
घर में आगो घालने, काटी लीज्यो नाक।। पत्र के अनुसार भंडारीजी ने पांच सौ रुपये गिनकर पुरोहित को दे दिए। पुरोहित जाने लगा तो वह बोला-'ठहरो, अभी अन्दर आओ।' 'क्यों?' पुरोहित द्वारा जिज्ञासा करने पर भंडारी ने कहा-'रुक्के में आदेश है, तुम्हारी नाक काटनी है।' अब पुरोहित घबराया और बोला-'यह रुक्का मेरा नहीं है।' उसने बहुत मिन्नतें कीं, पर भंडारी के पास राजा के हाथ का लिखा पत्र था। पांच सौ रुपये जिसे देने थे, उसी की नाक काटनी थी। उसने बलपूर्वक पुरोहित की नाक कटवा दी। पुरोहित अपने दुष्कृत्य से लज्जित हुआ और घर जाकर लेट गया।
दूसरे दिन ब्राह्मण राजा के समक्ष उपस्थित हुआ। राजा ने विस्मित भाव से पूछा-'कल तुम्हें रुक्का दिया था, आज फिर क्यों आए?' ब्राह्मण दीनता व्यक्त करता हुआ बोला-'वह तो पुरोहितजी ने ले लिया। राजा का मन संदिग्ध हुआ। उसने हकीकत की जानकारी कर पूछा- क्या तुम शराब पीते हो? क्या तुम ब्रह्मभोज से बहिष्कृत हो?' ऐसे प्रश्न सुनकर ब्राह्मण भी असमंजस में पड़ गया। उसने कहा-'राजन! शराब पीना तो दूर, मैं शराबी के साथ बैठकर भोजन भी नहीं
२६८ / कालूयशोविलास-१