SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. भारमल्ल शासण पछै, इसड़ो अनशन अन्य। __ श्रमणीगण में इण कियो, गणिवर-पुण्य अनन्य।। ८१. जंवरीमलजी दूगड़ के कथन का संवादी लोकप्रचलित पद्य हिड़क्यो पड़ियो खाड में, काढ़े जिणनै खाय। मूरख नै समझावतां, ज्ञान गांठ रो जाय।। ८२. वीतभयपुर पाटण का राजा उदाई भगवान महावीर का भक्त था। एक दिन उसके मन में चाह जगी-कितना अच्छा हो भगवान महावीर स्वयं यहां पधारें और मुझे दर्शन देकर कृतार्थ करें। भावना का वेग इतना प्रबल था कि वह भगवान महावीर की संवेदना में प्रतिबिंबित हो गई। भगवान उस समय बिहार प्रदेश में समवसत थे। कहां सिंधु-सौवीर और कहां बिहार। लगभग चौदह सौ मील की क्षेत्रीय दूरी को पाटने के लिए भगवान ने पाटण की ओर प्रस्थान किया। लम्बी यात्रा, बीहड़ पथ और हजारों मुनियों का परिवार । मार्गगत कठिनाइयों से सैकड़ों मुनि काल-कवलित हो गए। किंतु भगवान महावीर रुके नहीं। एक भक्त की भावना सफल करने के लिए भगवान पाटण पहुंचे। अपने आराध्यदेव के दर्शन पाकर राजा उदाई की प्रसन्नता सीमा के बंधन को तोड़कर आगे निकल गयी। भगवान महावीर ने वहां प्रवचन किया। राजा उदाई के मन पर उसकी इतनी तीव्र प्रतिक्रिया हुई कि वह संसार से विरक्त हो गया। राज्य को नरक का हेतु समझकर उसने अपने पुत्र केशीकुमार को उत्तराधिकार नहीं दिया। अभीचिकुमार उसका भानजा था। उसे राज्य सौंपकर राजा उदाई भगवान महावीर के पास प्रव्रजित हो गया। ८३. महाराजा श्रेणिक अपनी रानी चेलना के साथ भगवान महावीर की उपासना में गया। वहां से लौटते समय महारानी के देखा-ठिठुरन भरी सर्दी में मुनि प्रसन्नचंद्र राजर्षि ध्यानस्थ खड़े हैं। ठंडी हवाएं तीर की भांति उनके चारों ओर बह रही हैं, फिर भी मुनि निष्कंप हैं। उस दिन सदा की अपेक्षा सर्दी अधिक थी। महारानी मुनि की कठिन साधना का चिंतन करती हुई सो गई। जिस समय वह जगी, उसका एक हाथ रजाई से बाहर था। कमरा बन्द था, फिर भी हाथ अकड़ गया। उस समय अचानक ही उसके मुंह से बोल फूट पड़े-'हे भगवान! वह क्या करता होगा?' राजा ने रानी के ये शब्द सुने और वह उसके चरित्र के प्रति संदिग्ध हो उठा। अपने संदेह की जांच-पड़ताल किए बिना ही उसने रानी को समाप्त करने २६६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy