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उल्लास-परिचय
प्रथम उल्लास प्रथम उल्लास का प्रारंभ प्रस्तुति से हुआ है। पर इसका सम्ब" कालूयशोविलास के रचनाकाल से नहीं, सम्पादन के समय से है। प्रस्तुति के बाद संस्कृत भाषा के दो श्लोकों द्वारा पूज्य कालूगणी की स्तुति या स्मृति की गई है। उल्लास के प्रारंभ में आठ दोहे हैं, जो ग्रन्थकार ने आदि मंगल के रूप में प्रस्तुत किए हैं। इन दोहों की रचनाशैली पूरे उल्लास से भिन्न है। यह क्रम छहों उल्लासों में एक समान है। इन दोहों में ग्रन्थकार की कल्पनाप्रवणता और प्रतिभा की प्रखरता ने संश्लिष्ट होकर विलक्षण रूप धारण कर लिया, ऐसा प्रतीत होता है।
प्रथम उल्लास के मंगल वचन में पहले ऋषभनाथ, शान्तिनाथ और महावीर, इन तीन तीर्थंकरों को वन्दन किया गया है। उसके बाद आचार्य भिक्षु और उनकी परम्परा के आठवें आचार्य कालूगणी का स्मरण है। कालूयशोविलास की रचना निर्विघ्न सम्पन्न हो, इस उद्देश्य से तीर्थंकरों और आचार्यों का स्मरण आदि मंगल के रूप में किया गया है।
प्रत्येक उल्लास में सोलह गीत हैं। प्रथम उल्लास के प्रथम गीत के प्रारम्भिक पद्यों में पूज्य कालूगणी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व की संक्षिप्त-सी सूचना है। गीत का प्रारंभ भौगोलिक परिवेश की सूचना के साथ हुआ है। पारिवारिक परिचय, कालूगणी का जन्म और जन्मकुंडली का उल्लेख इसी गीत में है।
कालूगणी के जन्म की तीसरी रात में एक दानव का उपद्रव और मां छोगां के साहस की कहानी के साथ दूसरे गीत का प्रारम्भ हुआ है। नामकरण संस्करण, पिता का वियोग, माता छोगांजी का पिता के घर प्रवास, साधु-साध्वियों का सम्पर्क, वैराग्य का उद्भव, पूज्य मघावागणी के दर्शन, दीक्षा की प्रार्थना, दीक्षा का कल्प नहीं होने से धार्मिक अध्ययन कराने के लिए साधु-साध्वियों को विशेष निर्देश, मघवागणी के जोधपुर और उदयपुर चातुर्मासों की सूचना, साध्वीप्रमुखा गुलाबांजी
कालूयशोविलास-१ / २५