SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगन्तुक पंडितजी बोले - ' प्रश्न ही अधूरा है, तब उत्तर कैसे होगा ?' मध्यस्थता करने वाले बोले - 'पंडितजी ठीक कह रहे हैं । अधूरे प्रश्न का उत्तर कैसे हो सकता है? पहले प्रश्न पूरा करो।' पंडित बगलें झांकने लगा तो उन्होंने आगन्तुक पंडित को संबोधित कर कहा - 'प्रश्न की पूर्ति आप ही कर दीजिए ।' पंडितजी रोब जमाते हुए बोले- 'सीधा तुंबक तुंबक बोल दिया । तुबंक आएगा कहां से? पूरा पाठ इस प्रकार है 1 1 1 1 1 1 खेतस खेतस खेता है जी खेतस खेतस खेता है मेहस मेहरू मेहा है जी मेहस मेहस मेहा है बीजस बीजस बीजा है जी बीजस बीजस बीजा है बेलस बेलस बेला है जी बेलस बेलस बेला है नालस नालस नाला है जी नालस नालस नाला है फूलस फूलस फूला है जी फूलस फूलस फूला [और फिर ] तुंबक बक तुंबा है जी तुंबक तुंबक तुंबा है।' गांववासी लोग लगे अपने पंडित को कोसने । वे बोले - 'यह पाठ तो हम भी जानते हैं, पूरा पाठ इसी प्रकार है । हमारे पंडितजी पाठ खाते हैं । इस शास्त्रार्थ में ये पराजित हैं । इनको पराजित करने वाले आप पहले पंडित हैं । हम तो इन्हीं को परमेश्वर मानकर बैठे थे। पर अब हमारे यहां इस रूप में नहीं रह सकेंगे ।' शर्त के अनुसार उन्होंने वह बैल, पुस्तकें और घर का सारा सामान पंडितजी को भेंट कर दिया। पंडितजी ने अपने घर पहुंचकर सारी पुस्तकें पुत्र को लाकर सौंप दीं। पुत्र ने विस्मित भाव से पूछा - 'पिताजी, आपने उसे कैसे जीता?' पिता ने उत्तर दिया - पुत्र ! ऐसे पंडित मेरे जैसे अनपढ़ लोगों के द्वारा ही पीटे जाते हैं । तुम्हारे पांडित्य का परीक्षण विद्वद परिषद में हो सकता है। ऐसे पंडितों के सामने तो हम ही काफी हैं।' ५६. एक गरीब बुढ़िया का पुत्र जिस स्कूल में पढ़ता था, उसी स्कूल में एक राजकुमार भी पढ़ता था । बुढ़िया का बेटा प्रतिभासंपन्न था और राजकुमार था मंदमति। बैठने का स्थान निकट होने से दोनों में मित्रता हो गई। राजकुमार के अध्ययन में बुढ़िया का लड़का सहयोग करने लगा, इससे उनकी मित्रता और प्रगाढ़ हो गई। एक दिन अध्यापक ने बच्चों से कहा - 'विद्यार्थियो! दूध पौष्टिक भोजन होता है। सुबह नाश्ते में बच्चे दूध लेते रहें तो उनकी प्रतिभा और अधिक निखर जाएगी।' बुढ़िया के बेटे को दूध का स्वाद ही याद नहीं था । उसने घर पहुंचकर परिशिष्ट-१ / २८१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy