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तिण पुर रो लिखमीचंद सुगन भाद्रा रो, दोनूं जोड़े स्यूं, मालचंद मुनि प्यारो। सुंदर मोमासर और जड़ाव जसूजी, गंगाणे री कस्तूरां शिव-मग जूझी। तपसण सुरगति पच्चास दिवस संथारे', तीजे उल्लासे दीक्षा-व्रत स्वीकारे ।। ६. दो दीक्षा चाड़वास सुद चेत महीन,
नाथां रु गणेशां भगिनी चिन्मय चीनै। चातुरगढ़ जेठ कृष्ण इग्यारस दो ही, हीरां संतोकां कीन्ही आत्म-विशोही। दसमी आषाढ़ लाडनूं संवळी सूझी, केशर लिछमांजी सिरेकवर टमकूजी। जीवन-जागृति-हित कालू-चरण जुहारे, तीजे उल्लासे दीक्षा-व्रत स्वीकारे ।।
दोहा
१०. बंयासिय बीदासरे, सुद पख कार्तिक मास।
दस दीक्षा दी दीपती, कालू कृपा विलास।।
मुक्त छंद
११. हरियाणा रो लाल चिरंजी, खूबो हिम्मत खाटी।
लघुवय में लघुसिंह-निक्रीड़ित की चौथी परिपाटी।। १२. जमनां पानकंवर मां-बेटी पचपदरै री जाणो।
झमकू पीहर जात सुराणा श्वसुरालय राजाणो।। १३. सती सोहनां चाड़वास री, मोमासर री माणो।
नाम जुहारां गोत पटावरि, पीहर है बीदाणो।। १४. हुलस हुलासां संयम साध्यो, सिरेकवर श्रीकारी।
जीवराज मालू री पुत्री झमकू तिण पुर-वारी।।
१. मुनि लिखमीचंदजी और साध्वी जड़वांजी, मुनि सुगनचंदजी और साध्वी सिरेकंवरजी। २. देखें प. १ सं. ११४ ३. वि. सं. १६८२
२४४ / कालूयशोविलास-१