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६. छोगा माई हो अति हुलसाई, म्हारा राज!
बांटै धाई हो हर्ष-बधाई। म्हारा राज! आज न माई हो तन फूलाई, म्हारा राज!
वय बूढ़ाई हो सब भूलाई।। म्हारा राज! ७. मुनिवर इकती हो सती इकावन, म्हारा राज!
गुरु-पद सेवै हो तन-मन पावन। म्हारा राज! तीव्र तपस्या हो आत्म-तपावन म्हारा राज!
मुनि सुख कीधा हो वासर बावन ।। म्हारा राज! ८. कुंदन रणजी हो मास पकायो, म्हारा राज!
अणचां चांदां हो त्यूं तप ठायो। म्हारा राज! सति खूमां रो हो कुरब बढ़ायो, म्हारा राज!
बोझ रु कारज हो सहु बगसायो।। म्हारा राज! ६. चोथमल्ल मुनि हो जावदवासी, म्हारा राज!
पाई गुरु री हो करुणा-राशी' म्हारा राज! कार्तिक मासे हो द्वादश दीक्षा, म्हारा राज!
एकण साथे हो ली गुरुशिक्षा।। म्हारा राज! १०. माघ-महोत्सव हो है छापुर में, म्हारा राज!
छोटो खेतर हो सोची उर में। म्हारा राज! गुरु विहराया हो बहु सिंघाड़ा, म्हारा राज! शहर लाडणूं स्यूं हो परबारा।। म्हारा राज!
सोरठा ११. मुझ नै राख्यो लार, तनु-कारण हित लाडणूं।
गुरुवर करै विहार, छापर माघोत्सव कृते ।। १२. विरहव्यथाकुल चेत, न हुवै न्यारां में रहत।
सद्गुरु दयानिकेत, करुणामृत सिंचन दियो।। १३. भाई चंपालाल, रहसी ही थारै निकट।
और बता खुशहाल! किणकिण नै तूं राखसी।। १४. जिण पर थारी चाह, तिण नै ही तूं राखलै।
वाह! गुरुवर! वाह-वाह! वत्सलता वरणू किती? १५. और-और एकान्त, जो आंतर पोषण दियो।
सुमरत ही चित शांत, अंकित बा स्थिति हृदय में।। १. मुनि चोथमलजी को एक पुस्तक, बारी (सामूहिक परिष्ठापन-कार्य) और पट्ट-कार्य की
बख्शीश की गई।
उ.३, ढा.१४ / २३५