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________________ देता-लेतां रोक लगाणी, आ है करम-बंध री क्हाणी।। १०. ब्रह्मभोज री अब ल्यो व्याख्या, जिन-आगम री अविचल आख्या। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र हो, जातिवाद रो भ्रम विमुद्र हो।। ११. जाति-विप्र भोजन व्यवहारी, गुण-द्विजाति है आत्मोद्धारी। महाभारत' अरु उत्तरज्झयणं, ब्राह्मण-लक्षण समुचित वयणं ।। १२. संयम-सहित विप्र रो खाणो, संयम-पोषक धर्म सुहाणो। स्वयं असंयम में जो खावै, बो जैनागम पाप बतावै।। १३. है कटु सत्य प्रतिवचन म्हारो, मानस-संशय रो हरणारो। निरख-निरख मुख करणो टीको, धर्मनीति में लगै न नीको।। १४. पंडित निसुणी सद्गुण-मंडित पूज, तेजस्वी तीर्थ-शिरोमणी जी, म्हारा राज। अटल अखंडित समयोचित है सूझ, लख तन-मन हर्ष बधामणी जी, म्हारा राज।। १५. अब थैलासर चूरू शुभ चरणांह, करुणानिधि पूज्य पधारिया जी, म्हारा राज। श्राद्ध-समाज समागत जो शरणांह, मन-वांछित काज समारिया जी, म्हारा राज।। १६. उभय समय जिन-वाङ्मय सरस बखाण, भैक्षव-वच रचना वागरी जी, म्हारा राज।। १. शांतिपर्व, अध्याय २४५, श्लोक ११-१४, २२-२४ गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा मुद्रित २. उत्तरज्झयणं अ. २५/२२-२६ ३. लय : बधज्यो रे चेजारा २२२ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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