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ढाळः ८.
दोहा १. हस्तलिखित व्यवहार रो, शुभ छट्ठो उद्देश।
कर-कमलां में थामियो, श्रीकालू करुणेश।। २. सभा सभ्य-जन-संभृता, यथा चित्र-आलेख।
सकल श्रोतृगण श्रवण-हित, उत्कंठित अतिरेक।। ३. सुधा झरे मुख-निर्झरे, भवि-चकोर अनिमेष। ___ वासर में हिमकर रमै, या कालू गुरु एष।। ४. निरख विपक्षी-नयन में, प्रमिला रो परवेश। ___ वासर में हिमकर रमै, या कालू गुरु एष।। ५. असहन-जन-मन-चक्र की वक्रगती अविशेष।
वासर में हिमकर रमै, या कालू गुरु एष।। ६. ऊंचै स्वर गणिवर यदा, पाठ पढ़यो मुख जोर।
भविक-मोर प्रमुदित हुया, लख सावन-घनघोर ।। ७. कुमति-कुरंग विरंग-चित, मन-कल्पित सिंहनाद। त्यूं विपच्छ-मछ-कच्छ-दिल सागर रो सम्वाद ।।
लावणी छंद ८. दूजे गण स्यूं कोई निर्ग्रन्थी आई,
आचार-शिथिल संयम में दोष लगाई। जब तक न करै आलोयण, दण्ड न लेवै,
तब तक तिणनै निग्रंथ न गण में लेवै।। ६. तिण रै साथै संभोग असण-पाणी रो,
नहिं करै श्रमण संयम-तप-धर्म-सधीरो। यदि निग्रंथी अपणा दूषण आलोवै,
कर प्रतिक्रमण प्रायश्चित स्यूं अघ धोवै।। १०. तिण नै गण में ले साथे भोजन-पाणी
निग्रंथ करै, तिण में मत दूषण जाणी। व्यवहार सूत्र रो प्रगट पाठ ओ देखो, ल्यो पछै मिलावो अगलो पिछलो लेखो।।
१. व्यवहार सूत्र उद्देशक ६ सूत्र १०, ११
२१२ / कालूयशोविलास-१