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१८. विप्र एक है साथ में रे, नाम दास-भगवान।
चरचा बिच में मानसी रे, निज मध्यस्थ महान।। १६. बोलावै मुनि मगनजी रे, पा सद्गुरु-संकेत।
खड्या गणेशीलालजी रे, बोलै स्वयं सचेत।। २०. आप लोग बिन कारणे रे, आर्यां आण्यो आ'र ।
ग्रहो नित्य आनन्द स्यूं रे, तिण रो के आधार? २१. ल्याया गोरूलालजी रे, देखावण नै पाठ।
म्है पिण चावां देखणो रे, नहीं और ओचाट ।।
'तड़ाकै भाखै रे वाणी। भाखै गणसिणगार, सभासद सुणै सुधारस जाणी।।
२२. गुरु पूछ संभोग-वर्जणा, किस्यै सूत्र में भाली?
सभा सभासद विशद सुणै ज्यूं बांचो पाठ निकाली।।
'सुणो-सुणो रे सुजाण! चूरू री चरचा।
२३. लवै गणेशीलालजी रे, आया देखण पाठ।
बिना प्रयोजन क्यूं बहां रे, देखावण री बाट ।।
तड़ाकै भाखै रे वाणी।
२४. परम पूज्य फरमावै, जिण रो मंडन नहिं वर रीते।
तिण रो खंडन करणो, धरणो मूसल ऊंखल रीते।।
सुणो-सुणो रे सुजाण! चूरू री चरचा।
१. लय : झड़ाकै छोड़ी हो बाला २. लय : तूं तो आज्या ए नींद ३. लय : झड़ाकै छोड़ी हो बाला ४. • लय : तूं तो आज्या ए नींद
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