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१४. अबै बांठियो जबै जोर स्यूं, टीका मैं नहिं जाएं।
जी! टब्बो पिण है थारो लिखियो, क्यूंकर मैं परमाणूं? १५. जती लिख्योड़ी प्रती पढ्योड़ी, आ भी तो है थारी।
जी! किंयां सुझाऊं? जाणबूझ जो मींचे आंख उघारी।। १६. पूज्य शांत-चित गूंज वदै तब, वाणी अमिय-समाणी।
जी! 'मैं नहिं मानूं' इणरी औषध, जग में है अणजाणी।। १७. बोलै बीकानेर शहर स्यूं, आछो पंडित ल्यास्यूं।
जी! पाछो आस्यूं भय नहि खास्यूं, टीका-अरथ करास्यूं।। १८. अब उठ चल्या भले प्रतिशोध-भावना रो भ्रम ढोवै।
जी! गुरुवर प्रौढ़-प्रताप, सत्य रो बाळ न बांको होवै ।।
१सारा शीघ्र पधारो जी, सारा शीघ्र पधारो जी। तेरापंथ-संत सह चरचा, लाज बधारो जी।।
१६. दिन दो-च्यार विचार करंतां, ज्येष्ठ-पूर्णिमा आई।
बीकानेर शहर भीनासर, घर-घर खबर कराई।। २०. बीकायत में लोक हजारां, स्थानक-मंदिर-वारा। __आटा मांही नमक जिता-सा, तेरापंथी सारा।। २१. जोर तोर स्यूं हिलमिल चालो, चरचा-बात चलावां ।
सूत्र कढ़ावां पाठ दिखावां, आत्मशक्ति अजमावां ।। २२. उत्तर और पडुत्तर में तो कानीराम करारो।
बाकी कानीं-कानीं रेस्यां, देस्यां क्यूंहिक स्हारो।। २३. कवि वरवेश गणेशदत्तजी, संस्कृतज्ञ है साचो।
वृत्ति बंचावण साथे लेस्यां, ढळ्यो सांतरो ढांचो।। २४. यश का भूखा बरबस मानव, बड़पण पावण धावै।
पण नहिं सोचै, कहिं अणजाणी उलटी आफत आवै।।
२देखो भवि-प्राणी! गुरुवर-पुण्य-निशाणी। यूं हुवै अजाणी नाहक निज-मत हाणी।।
१. लय : रूठ्योड़ा शिवशंकर म्हारै घरे पधारो जी २. लय : धीठा में धीठ मैं कहा बिगाड़ा तेरा
१६४ / कालूयशोविलास-१