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८. आयो आखिर आसनो, अब कार्तिक दीक्षा मास। . ____ वैरागी वैरागण्यां, है हाजर मन उल्लास।। . ६. शुभ मुहुरत बिद अष्टमी, तिथि नियता दीक्षा हेत।
इक भाई महिला त्रयी, श्री पूज्य दियो संकेत।। १०. देख कुमारी कन्यका, आकर्षक आकृति ओज।
मिल्यो विरोध्यां नै सहज, ओ अवसर करतां खोज।। ११. आंदोलन द्वारा करां, इण दीक्षा रो अवरोध ।
जैनी जनता नै हुसी, प्रतिपक्ष-शक्ति रो बोध ।। १२. बढ़तो रुकसी बाढ़ ज्यूं, पन्थ्यां रो धरम-प्रचार।
देखो हृदय-दरिद्रता, है आदत स्यूं लाचार।। १३. पर सुख में असहिष्णुता, ओ आमय अप्रतिकार।
महिषी-परिमोषी परे, स्वीकारै आखिर हार।। १४. सझे समज्या सामठी, प्रव्रज्या रै प्रतिकूल।
भीषणतम भाषण करै, अपणायो उग्र उसूल।। १५. हाय! भीवाणी शहर में, हो रह्यो बड़ो अन्याय।
देखो दीक्षा-यज्ञ में, है बालक होम्या जाय।। १६. दूधमुंही आ बालिका, संन्यास खड़ग री धार। __हा! हा! सहन किंयां हुवै ? ओ हृदयहीन-व्यवहार।। १७. आ दीक्षा तो रोकस्यां, ज्यूं-त्यूं ही तन धन झोंक।
अवगुणग्राही आग्रही जन ज्यूं जंगल की जोंक।। १८. मूढ़ गूढ़-पथ क्यूं लखै, जो अकड़-पकड़ में रूढ़। __ हय-हेषा क्यूं सांभळे, नित रासभ-पीठारूढ़।।
लावणी छंद १६. भारी विरोध लख दास-द्वारका आवै,
मुनि मगन-चरण में अपणो दिल बहलावै। म्हाराजी! दीक्षा देद्यो अगर ठिकाणै,
तो सकल विरोधी लोक पड़े लचकाणै ।। २०. मुनि मगन-द्वारकादास! अरे! घबराया,
बन्दर-घुड़की स्यूं क्यूं पीछे पग ठाया?
१. देखें प. १ सं. ५६
१५२ / कालूयशोविलास-१