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३८. 'कानोड़' पधाऱ्या मालव नहिं फरसाणो,
यूं अंतराय रो प्रवल उदय पितवाणो। फिर लीन्हो मारग सुगुरु 'रेलमगरै' रो, ‘मोई' में मोड्यो सबल सीन झगडै रो।।
सोरठा ३६. इतर संघ रा साध, पूज्यपाद पे आय नै।
कियो खड़ो बिखवाद, इकतरफै आक्षेप में। ४०. श्री कालू गणधार, शांतिभाव अनपार बहि।
रोक्यो द्वन्द्व-प्रचार, साधुवाद सौ बार हो।। ४१. दूजै दिन शुभ-चेत, बा ही मुनि-युगली बली। खमतखामणा हेत, आ निज गलती स्वीकरी।।
लावणी छंद ४२. 'केलवै' कृपा 'बोरज' 'भाणो' 'तासोयल'',
'पूठोल' 'पीपलांतरी' 'आतमा' 'कोयल' । सायां-खेडै शुभ नजर ‘मजेरै' भारी,
हो ‘जीलवाड़' ‘रीछेड़' छटा दीक्षा री।। ४३. बलि चारभुजा 'गडबोर' 'पराली' पथ रे,
'दीवेर', 'छापल्यां' स्यूं अब घाटै उतरे। 'जोजावर' आया मारवाड़ सुखवासे, आ छट्ठी ढाळ कही दूजे उल्लासे ।।
ढाळः ७..
दोहा
१. कांठा में फरस्या गणी, आंटा-सांटा ग्राम।
मतिशाली पाली कियो, माघमहोत्सव स्वाम।।
१. तासाल २. देखें प. १ सं. ५३ ३. अरावली पर्वत की तलहटी में मारवाड़ (जोधपुर) के किनारे बसे हुए क्षेत्र-राणावास,
सुधरी, रामसिंहजी का गुड़ा, कंटालिया, सिरियारी, मांढा, जोजावर आदि।
उ.२, ढा.७ / १३५