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________________ पो. बिद में सिरेमल्ल संयम रै सरणै, बीकाण निवासी देवी आत्म उधरणै । हरखू भूरां धारी उज्ज्वल उपरारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। ___ दोहा ३२. माघ महोत्सव सित्तरै, पुनरपि पुर बीदाण। ___ मुनि चउसठ श्रमणी गुणी, इक शत नवती माण।। लावणी छंद ३३. बीजो खाटू रो चंदू चरण उम्हाई, मा. बिद फागण बिद क्रमशः दीक्षा पाई। लीलाधर शाकरजी किलाण कस्तूरो, गोविंद मंदमति कियो चरण चकचूरो। इत्यादिक टाळोकर सिवाय गणसेवी, मनिवर-सतियां पाई गण-संपत दैवी। तुलसी विरचित सोलहवीं ढाळ सुप्यारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। कलश ३४. गुरु-जनन जागृति' समन संयम त्रि-गुरु-चरण-उपासना, सिर डाल शासन-पाल-आसन री ग्रही अनुशासना। परिपार्श्व विहरण विमल विवरण तरण-तारण रो कही', षट दस सुढाले दिल खुशाले पूर्ण प्रथमोल्लास ही।। शिखरिणी-वृत्तम् अलं पारेकीर्त्याः कलयितुमहो यस्य सुगुरोगुरूद्योगैरासन्न च भुवि बुधा नैव विबुधाः। परं तच्छिप्यत्वादहमहह चेत्स्यामिति धिया, प्रपन्नेऽस्मिन् कार्ये कथमिव न लप्स्ये सफल्ताम् ।। उ.१, ढा.१६ / १११
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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