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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद कलाओं का उल्लेख मिलता है (I. समवायांग, 72.7, II. ज्ञाताधर्मकथा, I. 1. 85, III. औपपातिक, 146, IV. राजप्रश्नीय, 806, V. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 2.64, VI. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति, 2 पत्र 120, VII. ललितविस्तर 12वां अध्याय, पृ. 108, मि. विद्या.द.प्र., VIII. कादम्बरी (पूर्वार्द्ध), पृ. 178, IX. दशकुमारचरित, द्वितीय उच्छवास, पृ. 48, X. ज्ञाताधर्मकथा, I. 3. 48, XI. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति, 2, पत्र 121, XII. कामसूत्र, 1.3.15 [130]) । 38 सर्वप्रथम कला शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है (ऋग्वेद, 8.47.16 [131]) । उपनिषदों में भी कला शब्द प्रयुक्त हुआ है ( कामसूत्र, विद्यासमुद्देशप्रकरण, चौखम्बा प्रकाशन, पृ. 94 पर उद्धृत [ 132] ) । भरत के नाट्यशास्त्र के पूर्व तक कला एवं शिल्प एक अर्थ के द्योतक रहे हैं, कला शब्द का अर्थ ललित कला के रूप में प्रयुक्त था (नाट्यशास्त्र, 1.117 [133]) । इन कलाओं की सूचियों में पौराणिक एवं शिल्प ज्ञान-विज्ञान के विषय हैं । जिन्हें मुख्यता की दृष्टि से तेरह विषयों में वर्गीकृत किया है1. पठन-पाठन लेख गणित इत्यादि, 2. काव्य ( आशुकविता ) गीत श्लोक रचना इत्यादि, 3. रूपविद्या आकृति प्रदान करना (मूर्तिकला), 4. संगीत - स्वरगतज्ञान, बजाने का ज्ञान, 5. पृथक्करणविद्या (उदकमृत्तिका), 6. सर्वप्रकार के खेल, 7. स्वास्थ्य, शृंगार एवं पाक - विज्ञान, 8. चिह्न संकेत ज्ञान, 9. शकुन शास्त्र का ज्ञान, 10. ज्योतिर्विद्या, 11. रसायनविद्या, 12. वास्तुशास्त्र, 13. युद्धविद्या (तुलना, दशकुमारचरित, प्रथम उच्छ्वास, पृ. 46-48 [134])। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वस्तुतः प्राचीन ग्रन्थकार किसी विषय अथवा कार्य कौशल को, कला के अर्थ में लेते थे और उपयोगी तथा ललित दोनों प्रकार की कलाएँ, कला की श्रेणी में आती थी । इस प्रकार विभिन्न विषयों को जानने वाला, ज्ञान प्राप्त करने वाला कला पारंगत बनता था । किन्तु हर कोई इन सभी कलाओं में निष्णात हो ऐसा जरूरी नहीं था और इन सम्पूर्ण कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने का उद्देश्य ऐसा ही था, जिसकी पूर्ति शायद ही कभी हो सकती हो । 1. J. C. Jain, Life in Ancient India as Depicted in the Jain Canon and Commentaries, pp. 172-173.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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