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मोदक–एक मुनि के मन में मोदक खाने की इच्छा जगी। स्त्यानर्द्धि के उदय से रात्रि में वह उठा, दिन में जिस घर में मोदक देखे थे उसी घर में पहुँचा, मन इच्छित मोदक खाकर शेष बचे मोदक को पात्र में डाल, उपाश्रय में जाकर सो गया। पुनः जगने पर गुरु के पास आलोचना की। उसे संघ से बहिष्कृत कर दिया गया।
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असातावेदनीय
देवशाल नगर के राजा विजयसेन के श्रीमती नाम की रानी थी। उनके एक पुत्र था जयसेन तथा एक पुत्री थी कलावती। कलावती अपूर्व सुन्दर और गुणवती थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो उसका चित्र लेकर एक चित्रकार शंखपुर देश के राजा शंख के पास गया। राजा शंख उस चित्र पर मोहित हो गया। पूछने पर चित्रकार ने बताया, जो भी पुरुष इस कन्या द्वारा पूछे गए चार प्रश्नों का उत्तर देगा, स्वयंवर में यह कन्या उसी के गले में वरमाला डालेगी।
राजा मोहित तो था ही, उसने सरस्वती देवी की आराधना की। देवी ने प्रकट होकर बताया-'स्वयंवर मंडप के एक स्तंभ पर पुतली बनी होगी। उस पर हाथ रख देना। वह राजकुमारी के चारों प्रश्नों का उत्तर दे देगी।
राजा शंख ने स्वयंवर मण्डप में जाकर ऐसा ही किया। उसका विवाह कलावती के साथ हो गया। राजा शंख और रानी कलावती बड़े प्रेम से रहने लगे। रानी कलावती गर्भवती भी हो गई।
एक बार कलावती का भाई जयसेन वहाँ आया। अन्य अनेक वस्त्राभूषणों के अतिरिक्त उसने अपनी बहन को दो बहुमूल्य कंगन भी दिये। कंगन पहनकर वह बहुत खुश हुई। वह दासी से कहने लगी-'मुझ पर उसका कितना स्नेह है कि इतने कीमती और खूबसूरत कंगन भेंट किये हैं। उसके प्रेम को मैं शब्दों में नहीं कह सकती।'
रानी के अन्तिम शब्द राजा शंख ने सुन लिये। वह उस समय उसके कक्ष के पास से ही गुजर रहा था। उसे यह भ्रम हो गया कि रानी किसी दूसरे पुरुष से प्रेम
कर्म-दर्शन 251