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। कहानियां
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(1)
क्षितिप्रतिष्ठित नगर में दो भाई रहते थे—अर्हन्नक और अर्हन्मित्र। बड़े भाई की पत्नी छोटे भाई में अनुरक्त हो गई। छोटा भाई उसको नहीं चाहता था। वह उसे पीड़ित करने लगी। तब उसने कहा—'क्या तुम मेरे भाई को नहीं देखती?' उसने अपने पति अर्हन्नक को मार डाला फिर अर्हन्मित्र से बोली-'क्या अब भी तुम मुझे नहीं चाहोगे? अर्हन्मित्र के मन में इस स्थिति से विरक्ति उत्पन्न हुई और प्रव्रजित हो गया। वह भी आर्तध्यान से मरकर कुतिया बनी। साधु उस गांव में गए, जहाँ वह कुतिया उत्पन्न हुई थी। कुतिया ने मुनि को देखा। वह उसके पीछे लग गई और बारबार उसका आश्लेष करने लगी। 'यह उपसर्ग है'—ऐसा सोचकर मुनि रात्रि में वहां से विहार कर गए। वह कुतिया मरकर अटवी में बंदरी बनी। एक बार वे मुनि कर्मधर्म संयोग से उसी अटवी के मध्य से गुजर रहे थे। बंदरी ने मुनि को देखा और उनके कंठों से चिपक गई। मुनि बड़ी मुश्किल से छुटकारा पाकर पलायन कर गए। वहाँ से मरकर वह बंदरी यक्षिणी हुई। उसने अपने अवधिज्ञान से देखा पर वह मुनि के छिद्र नहीं खोज पाई क्योंकि मुनि अप्रमत्त थे। वह पूर्णरूप से मुनि के छिद्र देखने लगी।
काल बीतने पर मुनि के समवयस्क श्रमणों ने उससे कहा—'अर्हन्मित्र! धन्य हो तुम, क्योंकि तुम कुतिया और बंदरी के प्रिय हो। एक बार वह मुनि गड्ढे को पार कर रहा था। उसमें ‘पादविष्कम्भक' जितना पानी था। उसने पानी को पार करने के लिए पैर पसारे। गतिभेद हुआ तब यक्षिणी ने छिद्र देखकर उसका ऊरु तोड़ डाला। कहीं मैं पानी में गिरकर अप्काय की विराधना न कर डालूं—यह सोचकर मिथ्यादुष्कृत कहता हुआ मुनि जमीन पर गिर पड़ा। सम्यग्दृष्टि वाली किसी दूसरी यक्षिणी ने उस पूर्व यक्षिणी को डांटा और देवप्रभाव से मुनि का ऊरु पुनः उसी स्थान पर जुड़ गया।
(2)
अग्निशर्मा तापस और गुणसेन राजा दोनों बाल मित्र थे। राजा गुणसेन ने अग्निशर्मा तापस को तीन बार मासखमण तप के पारणे का निमंत्रण दिया किन्तु हर बार गुणसेन राजा अपनी राज्य-व्यवस्था की व्यस्तता के कारण पारणे का दिन भूलता रहा और अग्निशर्मा तापस हर बार निराश होकर लौटता रहा। अग्निशर्मा
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