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914. तैजस और कार्मण शरीर में अंगोपांग नामकर्म का उदय क्यों नहीं होता? उ. तैजस और कार्मण शरीर में आत्म प्रदेश शेष तीन शरीरों के आधार पर
आकार ग्रहण करने से उनका स्वतंत्र आकार नहीं होता है, अतः अंगादि भी नहीं होते हैं। जिस प्रकार अलग-अलग बर्तन में डाले हुए पानी का अपना कोई स्वतंत्र आकार नहीं होता है, उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर का अपना कोई
विशिष्ट आकार नहीं होता है। 915. बंधन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म पूर्व गृहीत एवं वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले पदगलों के
पारस्परिक सम्बन्धों का हेतुभूत बनता है उसे शरीर बंध नाम कर्म कहते हैं। 916. शरीर बंधन नाम कर्म की कितनी उपकृतियां हैं? __उ. पांच-(1) औदारिक बंधन नाम कर्म, (2) वैक्रिय बंधन नाम कर्म,
(3) आहारक बंधन नाम कर्म, (4) तैजस बंधन नाम कर्म, (5) कार्मण
बंधन नाम कर्म। 917. गर्गर्षि ऋषि के मत में बंधन कितने प्रकार के माने गये हैं? उ. पन्द्रह प्रकार के। (जिनका नामोल्लेख प्रश्न सं. 7,103 प्रकृतियों में किया
गया है) 918. बंधन नाम कर्म को किस उपमा से उपमित किया गया है?
उ. बंधन नाम कर्म को लाख की उपमा से उपमित किया गया है। जिस प्रकार ___ लाख (गोंद, फेविकॉल) दो पदार्थों को जोड़ देता है ठीक उसी प्रकार बंधन
नाम कर्म पूर्व गृहीत औदारिक आदि के वर्गणा के पुद्गलों को नये ग्रहण
किये गये औदारिक आदि पुद्गलों से जोड़ता है। 919. संघातन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. संघात का अर्थ है—एकत्र करना। (जैसे-झाड़ के बिखरे हुए घास के
तिनकों को इकट्ठा करना)। शरीर के गृहीत और ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों के बंधन को संघात यानी गाढ़ बंध करने में निमित्त भूत कर्म
पुद्गलों को शरीर-संघात नामकर्म कहते हैं। 920. संघातन नाम कर्म को किसकी उपमा दी गई है? उ. संघातन नाम कर्म को दंताली की उपमा दी गई है। जिस प्रकार दंताली
अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई घास को एकत्र करती है, ठीक उसी प्रकार संघातन नाम कर्म बिखरे हुए पुद्गलों को एकत्र करता है।
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