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6 + वर्ण 5 + गंध 2 + रस 5 + स्पर्श 8 + आनुपूर्वी 4 + विहायोगति 2 = 65 + त्रस-स्थावर दशक (त्रस नाम से अयशःकीर्ति नाम तक) 20 = 85 + 8 प्रत्येक प्रकृति = 93। जहाँ 103 प्रकृतियों का उल्लेख आता है वहाँ शरीर बंधन नाम के 5 भेदों की जगह पन्द्रह भेद किये गये हैं। वे इस प्रकार हैं1. औदारिक शरीर बंधन नाम 2. औदारिक तैजस बंधन नाम 3. औदारिक कार्मण बंधन नाम 4. वैक्रिय बंधन नाम 5. वैक्रिय तैजस बंधन नाम 6. वैक्रिय कार्मण बंधन नाम 7. आहारक आहारक बंधन नाम 8. आहारक तैजस बंधन नाम 9. आहारक कार्मण बंधन नाम 10. औदारिक, तैजस कार्मण बंधन नाम 11. वैक्रिय, तैजस कार्मण बंधन नाम 12. आहारक तैजस कार्मण बंधन नाम 13. तैजस तैजस बंधन नाम 14. तैजस कार्मण बंधन नाम
15. कार्मण कार्मण बंधन नाम 849. पिण्ड प्रकृति किसे कहते हैं?
उ. जिस प्रकृति के अनेक भेद हों उसे पिण्ड प्रकृति कहते हैं। 850. चौदह पिण्ड प्रकृतियां कौन-कौनसी हैं? उ. चौदह पिण्ड प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
(1) गति, (2) जाति, (3) शरीर, (4) अंगोपांग, (5) शरीर बंध नाम, (6) शरीर संघात, (7) संहनन, (8) संस्थान, (9) वर्ण, (10) गंध,
(11) रस, (12) स्पर्श, (13) आनुपूर्वी, (14) विहायोगति। 851. गति किसे कहते हैं? उ. एक जन्म स्थिति से दूसरी जन्म स्थिति में जाने का नाम गति है। जैसे
मनुष्य से तिर्यञ्च में जाना। 852. एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने की बीच की गति को क्या कहते हैं?
उ. अन्तरालगति। 853. अन्तरालगति कितने प्रकार की होती है?
उ. दो प्रकार की-ऋजु और वक्र। 854. ऋजुगति किसे कहते हैं? तथा उसका कालमान कितना है?
उ. जिसमें उत्पत्ति स्थान सम रेखा में हो वह ऋजुगति है। उसमें एक ही समय
___ में जीव उत्पत्ति स्थान पर पहुंच जाता है। 186 कर्म-दर्शन