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1. सम्यक्त्व वेदनीय 2. मिथ्यात्व वेदनीय 3. सम्यक् मिथ्यात्व वेदनीय 4. कषाय वेदनीय 5. नो कषाय वेदनीय विस्तार से अट्ठाईस प्रकृतियों के नाम के अनुसार ही भोगने के अट्ठाईस
प्रकार हैं। 768. मोहनीय कर्म का बंध कौनसे गणस्थान तक होता है?
उ. नौवें गुणस्थान तक। 769. मोहनीय कर्म का उदय व सत्ता कौनसे गुणस्थान तक होता है? उ. मोह कर्म का उदय दसवें गुणस्थान तक तथा ग्यारहवें गुणस्थान तक सत्ता
होती है। 770. मोहकर्म का उपशम कौनसे गुणस्थान तक होता है? उ. चौथे से ग्यारहवें गणस्थान तक। (ग्यारहवें से नीचे चारित्र मोह का पूर्ण
उपशम नहीं होता है। केवल दर्शन मोह का हो सकता है।) 771. मोहनीय कर्म का क्षयोपशम कौनसे गुणस्थान तक होता है? ___उ. दर्शन मोह कर्म का क्षयोपशम पहले से सातवें गुणस्थान तक।
चारित्र मोह कर्म का क्षयोपशम पहले से दसवें गुणस्थान तक। 772. मोहकर्म के क्षयोपशम से जीव क्या प्राप्त करता है? उ. 1. दर्शन मोह के क्षयोपशम से तीन दृष्टियां-(1) मिथ्यादृष्टि,
___(2) सम्यक् मिथ्यादृष्टि, (3) सम्यक्दृष्टि प्राप्त होती है। 2. चारित्र मोह कर्म के क्षयोपशम से जीव को-(1) देशविरति,
(2) सामायिक चारित्र, (3) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (4) परिहार
विशुद्धि चारित्र, (5) सूक्ष्म सम्पराय चारित्र की प्राप्ति होती है। 773. कषाय-क्षय, क्षयोपशम और उपशान्त से जीव क्या प्राप्त करता है? उ. जीव कषाय के पूर्ण क्षय से निर्वाण प्राप्त करता है। कषाय के उपशांत
अथवा क्षीणोपशान्त होने पर जीव अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है। 774. मोहनीय कर्म का क्षायिक भाव कौनसे गुणस्थान में होता है? उ. (1) दर्शन मोह का क्षायिक भाव चौथे से चौदहवें गुणस्थान एवं सिद्धों में
होता है। (2) चारित्र मोह का क्षायिक भाव बारहवें, तेरहवें व चौदहवें गुणस्थानों में
होता है।
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