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वेदनीय कर्म
600. वेदनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से संसारी प्राणी सुख या दुःख का वेदन करते हैं वह
वेदनीय कर्म है। 601. वेदनीय के कितने प्रकार हैं?
उ. दो—सात वेदनीय और असात वेदनीय। 602. सातवेदनीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. जिस कर्म के उदय से जीव शारीरिक और मानसिक सुख की अनुभूति . करता है वह सातवेदनीय कर्म है। 603. असातवेदनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव मानसिक संक्लेश और शारीरिक कष्ट का
अनुभव करता है वह असातवेदनीय कर्म है।' .. 604. स्थानांग सूत्र के अनुसार वेदना के दो प्रकार कौनसे हैं? उ. स्थानांग सूत्र में वेदना दो प्रकार की बतायी गई हैं(1) आभ्युपगमिकी-अंगीकृत या स्वीकृत वेदना। जैसे—तपस्या आदि
काल में वेदना होती है। (2) औपक्रमिकी-उपक्रम के निमित्त से होने वाली वेदना। जैसे—शरीर
में रोग संबंधी वेदना होती है। 605. सातवेदनीय कर्म बंध के कितने हेतु हैं? उ. सातवेदनीय कर्म बंध के छः हेतु हैं
(1) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को अपनी असत् प्रवृत्ति से दुःख न देना। (2) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दीन न बनाना। (3) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के शरीर को हानि पहुंचाने वाला शौक
पैदा न करना। (4) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को न सताना। (5) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों पर लाठी आदि से प्रहार न करना। (6) प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को परितापित न करना।
1. कथा सं. 20 से 23 2. प्राण-दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले जीव, भूत-वनस्पति के जीव, जीव-पांच इन्द्रिय
वाले प्राणी, सत्त्व-पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु के जीव।
कर्म-दर्शन 135.